Wednesday, May 21, 2025
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शिवलिंग की सबसे पहले पूजा किसने की!

इस बात को भगवान विष्णु जी ने सत्य मान लिया, और तभी उस लिंग से ॐ की ध्वनी सुनाई दी और फिर साक्षात भगवान शिव प्रगट हुए। वह ब्रह्माजी पर काफी ज्यादा क्रोधित हुए, क्योंकि ब्रह्माजी ने झूठ बोला था। इसके अलावा भगवान शंकर ने केतकी के फूल को श्राप दिया की वह कभी भी उसे अपनी पूजा में स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए भगवान शिव को केतकी का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।

 

 

हिन्दू धर्म में ज्यादातर देव-देवताओं की पूजा मूर्ती के रूप में की जाती हैं, लेकिन भगवान शंकर ऐसे हैं जिनकी पूजा शिवलिंग के रूप में करने का विधान हैं। आइये जानते हैं शिवलिंग की पूजा करने की शुरुवात कैसे हुई? सबसे पहले शिवलिंग की पूजा किसने की? इन सभी तथ्यों का वर्णन लिंगमहापुराण में मिलता हैं।

 

सबसे पहले शिवलिंग की स्थापना की कथा :-

 

लिंगमहापुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्माजी दोनों में स्वयं को श्रेष्ठ बताने को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। जब दोनों का विवाद बहुत ज्यादा बढ़ गया तो अग्नि से लिपटा हुआ एक लिंग, वहीँ पर प्रगट हो गया।

 

यह लिंग ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु जी के बीच में आकर स्थापित हो गया। दोनों ही देव इस अग्नि रुपी लिंग के रहस्य को समझ पाने में सक्षम नहीं थे। तभी उन्होंने निर्णय लिया की दोनों में से सबसे पहले जो इस अग्नि ज्वलित लिंग के स्रोत का पता पहले लगा लेगा, वहीँ उन दोनों में श्रेष्ठ होगा।

 

इस तरह भगवान विष्णु लिंग के निचे की ओर जाने लगे और ब्रह्मा जी लिंग के उपर की दिशा की जाने लग गये।

 

हज़ारों वर्षों तक खोज करने के पश्चात भी वह इसके मुख्य स्रोत का पता लगाने में विफल हो गये। परन्तु ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से आकर यह कहा की उन्होंने इसके स्रोत का पता लगा लिया है और केतकी के फूल को इसका प्रमाण बताया और केतकी के फूल ने भी ब्रह्माजी के झूठ में साथ दिया।

इस बात को भगवान विष्णु जी ने सत्य मान लिया, और तभी उस लिंग से ॐ की ध्वनी सुनाई दी और फिर साक्षात भगवान शिव प्रगट हुए। वह ब्रह्माजी पर काफी ज्यादा क्रोधित हुए, क्योंकि ब्रह्माजी ने झूठ बोला था। इसके अलावा भगवान शंकर ने केतकी के फूल को श्राप दिया की वह कभी भी उसे अपनी पूजा में स्वीकार नहीं करेंगे, इसलिए भगवान शिव को केतकी का फूल नहीं चढ़ाना चाहिए।

साथ ही भगवान शंकर ने भगवान विष्णु पर प्रसन्न होकर उन्हें अपना ही रूप माना। यानी की हरी ही हर हैं और हर ही हरी हैं।

फिर ब्रह्माजी और भगवान विष्णु दोनों ही ॐ स्वर का जाप करने लगे। श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु जी अराधना करने लगे और इस पर भगवान शंकर उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवलिंग के रूप में प्रगट हुए। लिंगमहापुराण के अनुसार वह भगवान शिव का पहला शिवलिंग था।

सर्वप्रथम श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी और पालनहार भगवान विष्णु ने ही किया था शिवलिंग का पूजन :-

जब भगवान शंकर वहां से अन्तर्धान हो गये तो वहा पर वह शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गये। तब श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु ने शिव के उस लिंग की पूजा की। उसी समय से भगवान शंकर को शिवलिंग के रूप में पूजा जाने लगा।

देव शिल्पी विश्वकर्मा जी ने विभिन्न देवी-देवताओं के लिए विभिन्न शिवलिंग का किया निर्माण :-

लिंगमहापुराण के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने देव शिल्पी विश्वकर्मा जी को विभिन्न देवी-देवताओं के लिए अलग-अलग धातु से शिवलिंग बना कर देने के लिए आदेश दिया। फिर देव शिल्पी विश्वकर्मा ने अलग-अलग देवताओं के लिए अलग-अलग प्रकार के शिवलिंग का निर्माण किया जो की इस प्रकार से हैं :-

■ इन्द्रलोक में सभी देवताओं के लिए चांदी का शिवलिंग बनाया गया।

■ भगवान विष्णु के लिए नीलकान्तमणि शिवलिंग का निर्माण किया गया।

■ देवी लक्ष्मी जी के लिए लक्ष्मीवृक्ष (बेल) से शिवलिंग को बनाया गया।

■ देवी सरस्वती जी के लिए रत्नों से शिवलिंग का निर्माण किया गया।

■ रुद्रों को जल से बने शिवलिंग प्रदान किये गये।

■ राक्षसों और दैत्यों के लिए लोहे के बने शिवलिंग प्रदान किये गये।

■ वायु देव को पीतल की धातु से बना शिवलिंग दिया गया।

■ वरुण देव के लिए स्फटिक से शिवलिंग का निर्माण किया गया।

■ सभी देवियों को पूजा करने के लिए बालू से बनाया गया शिवलिंग भेंट किया गया।

■ धन के देवता कुबेर जी के पुत्र विश्रवा को सोने से निर्मित शिवलिंग दिया गया।

■ आदित्यों को तांबे के धातु से बना शिवलिंग प्रदान किया गया।

■ वसुओं को चंद्रकान्तमणि से बना हुआ शिवलिंग प्रदान किया गया।

■ अश्वनीकुमारों को मिट्टी का बना शिवलिंग दिया गया।

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