कैसे रावण की गलती से बैद्यनाथ धाम में स्थापित हुए भगवान शिव?
पुराणों में रावण और भगवान शिव से जुड़ी कई रोचक कथाएँ मिलती हैं। इनमें से एक कथा बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग की स्थापना से जुड़ी है। यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार और अधीरता किस तरह मनुष्य को महान उपलब्धियों से भी वंचित कर सकती है। आइए जानते हैं इस कथा को विस्तार से।
रावण की घोर तपस्या और वरदान
लंका के राजा रावण भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उन्होंने कठोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न कर लिया। रावण ने भगवान शिव से वरदान स्वरूप उन्हें लंका ले जाने की इच्छा जताई। शिवजी ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर कहा,
“मैं तुम्हारे साथ चलूंगा, लेकिन एक शिवलिंग के रूप में। ध्यान रखना, यदि तुमने इसे कहीं भी भूमि पर रख दिया, तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा।”
रावण को अपनी शक्ति पर अत्यधिक गर्व था। वह शिवलिंग को लेकर गर्व से लंका की ओर प्रस्थान कर गया।
भगवान विष्णु ने कैसे रोका रावण को?
जब देवताओं को यह ज्ञात हुआ कि रावण भगवान शिव को लंका ले जा रहा है, तो वे घबरा गए। वे भगवान विष्णु के पास पहुँचे और इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने एक बालक का रूप धारण किया और रास्ते में रावण के सामने आ गए।
उसी समय भगवान विष्णु ने अपनी माया से रावण के पेट में गंगा का जल प्रवाहित कर दिया, जिससे उसे तीव्र मूत्र विसर्जन की आवश्यकता महसूस हुई। रावण असमंजस में पड़ गया क्योंकि उसे शिवलिंग को नीचे नहीं रखना था। तभी उसने उस बालक (भगवान विष्णु) को बुलाया और कहा,
“मैं लघुशंका करने जा रहा हूँ, कृपया कुछ समय के लिए इस शिवलिंग को पकड़ लो।” बालक बने विष्णु जी ने कहा, “ठीक है, लेकिन यदि यह बहुत भारी हुआ तो मैं इसे नीचे रख दूँगा।”रावण मूत्र विसर्जन करने चला गया, लेकिन उसकी स्थिति बिगड़ गई और वह काफी देर तक वहीं रुका रहा। इस बीच, बालक बने विष्णु जी ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया।
शिवलिंग की स्थापना और रावण का क्रोध
जब रावण वापस आया और देखा कि शिवलिंग भूमि पर स्थापित हो चुका है, तो वह अत्यंत क्रोधित हुआ। उसने पूरी शक्ति से शिवलिंग को उठाने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। उसके प्रयासों से शिवलिंग थोड़ा झुक गया। आज भी बैद्यनाथ धाम में स्थित यह ज्योतिर्लिंग थोड़ा झुका हुआ दिखाई देता है। रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। उसने वहीं भगवान शिव की आराधना की।
रावण के मूत्र से बना तालाब?
ऐसा कहा जाता है कि रावण जब मूत्र विसर्जन कर रहा था, तो वहाँ एक तालाब बन गया। बैद्यनाथ धाम में आज भी दो प्रमुख तालाब हैं। एक में लोग स्नान करते हैं, जबकि दूसरे तालाब को कोई छूता भी नहीं। मान्यता है कि यह तालाब रावण के मूत्र से बना था, इसलिए इसे अपवित्र माना जाता है।
निष्कर्ष
यह कथा हमें सिखाती है कि चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अहंकार और अधीरता से बड़े अवसर हाथ से निकल सकते हैं। रावण ने अपनी शक्ति और बुद्धिमत्ता के बावजूद अधीरता दिखाई, जिसके कारण वह भगवान शिव को लंका नहीं ले जा सका।
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