चमचमाती शादियों का क्या औचित्य, फिजूलखर्ची पर लगाये लगामः राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश
शादी जैसे पवित्र आयोजन का उद्देश्य अब सादगीभरी परंपराओं का निर्वाह नहीं, बल्कि बाजारवाद से प्रभावित प्रदर्शन बन चुका है।आजकल शादी-विवाह के आयोजन इतने महंगे हो गये है कि एक सामान्य नागरिक स्वयं अपने आपको हीन भावना से ग्रस्त हो रहा है। समाज में दिखावा, झूठी शान शौकत दिखाने के चक्कर में समाज एक बड़ा वर्ग कर्जें के बोझ तले दबा जा रहा है। सोशल मीडिया पर अपना स्टेटस दिखाने के लिए आयोजन में धुआं ही धुआं,आतिशबाजी, कान फौड़ू डीजे और कई सारे कथित स्पेशल इफेक्ट शादी ब्याह का फैशन बन गया है। और यही प्रदर्शन हमारी सदियों की परंपराओं पर हावी हो रहा है। कुछ इस तरह की हम परंपराओं को कही पीछे छोड़ इस होड़ में लगे हैं कि किसकी शादी कितनी महंगी और भव्य रही। यह भव्यता रिश्तों को कम करती जा रही है और समाज में खाई बनाती जा रही है। अब तो ये दिखावा शादी में आए मेहमानों की जिंदगियों से भी खेलने लगा है। पिछले दिनों भोपाल के राजगढ़ में एक शादी समारोह के दौरान नाइट्रोजन कंटेनर में गिरने से एक बच्ची की मौत हो गई। ऩाइट्रोजन गैस दूल्हा-दूल्हन की एंट्री पर धुआँ करने के लिए लाई गई थी।
महंगे महंगे मैरिज होम, तरह-तरह के पकवान जिसकी कोई सीमा नहीं या यूं कहें कि खाना इतनी अधिक वैराइटियों में बनाया जाता है कि एक व्यक्ति उसे पूरी डिशो को चख भी नहीं पाता, अन्न की बर्बादी,धन की बर्बादी के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता।
शादियों में इस भव्यता और प्रभावों के पीछे एक मानसिक दबाव भी छिपा होता है। अक्सर परिवारों और जोड़ों को यह महसूस होता है कि जितनी बड़ी और भव्य शादी होगी, उतना ही सम्मान और प्रशंसा मिलेगी, लेकिन यह दिखावा परिवारों को आर्थिक संकट में डाल रहा हैं। शादी का असल उद्देश्य दिखावे की होड़ में खोता जा रहा है। दिखावे की चाहत भावनाओं पर हावी हो रहा है।
हमारी जिम्मेदारी सिर्फ अपनों या परिवार रिश्तेदारों की खुशियों के लिए ही नहीं, समाज के लिए भी है। इस जिम्मेदारी के बीच सब “अच्छा –अच्छा है”… कह देने से सुधार की गुंजाइश खत्म हो जाती हैं।
शादियों में भव्यता की चाह,महंगे आयोजन और शानदार सजावट अब आम हो चुके हैं। जहां पहले विवाह समारोह सादगी से संपन्न हो जाते थे, वही आजकल के जोड़े और उनके परिवार एक बड़ी और चमचमाती शादी की योजना मिलकर बनाते हैं और उनकी कोशिश इसे ग्लेमराइज्ड करने की होती है, जो किसी और की शादी से ज्यादा यादगार हो। हालांकि, यह सोशल मीडिया और दर्शकों के सामने दिखावे के लिए होता है, जिससे एक बड़ा दबाव लोगों पर बनता है और भी भव्य बनाने का। मीडिया पर एक वायरल फोटो या वीडियो के लिए कुछ भी किया जा सकता है और इन्हीं के कारण खतरनाक प्रदूषण और दुर्घटनाएं भी हो रही है। जो बहुत सी शादियों का दुखद पहलू है। हैरानी की बात तो यह है कि किसी को कोई परेशानी हो तो हो, स्टेज पर फोटो सेशन वैसे ही चलता रहता है। यह संवेदनहीनता का एक उदाहरण है।
शादियों में सादगी की ओर लौटने की आवश्यकता है। क्या यह जरूरी है कि हम पारंपरिक आयोजन को छोड़ ट्रेंड्स के पीछे भागते रहे… असल में, शादियों की वास्तविक खूबसूरती उन छोटे पलों में छुपी होती है जो हमें एक-दूसरे के साथ बिताने होते है। सादगी और सच्चाई से भरी शादी उतनी सुंदर हो सकती है जितनी भव्य और महंगी शादी। केवल दिखावे के लिए की गई शादी से आर्थिक कर्ज,सेंविग खत्म,भविष्य की असुरक्षा,मानसिक तनाव,अवसाद,रिश्तों में कड़वाहट, आपसी आरोप प्रत्यारोप का कारण बन जाता है।
हमें अपनी सोच बदलनी होगी रिश्ते,रीति रिवाज और सच्चाई को प्राथमिकता दें, दिखावे के लिए किसी की जान खतरे में ना डाले,छोटी और सादगी भरी शादी लोग सालों बाद भी याद रखते है।
कम में भी बहुत है, इस सोच को अपनाएँ तो इसका सुखद परिणाम आ सकता है। शादी में 1000 लोगों को बुलाने से बेहतर है कि 50 रिश्तेदारों को अपनेपन से खिलाना, लाखों का लहंगा पहनने से बेहतर है,मां की साड़ी में मुस्कुराना, फोटो से बेहतर है असली रिश्ते और स्मृतियां बनाने के लिए सादा सा आयोजन करना चाहिए, क्योंकि फोटो नहीं यादें दिल में बसती है।
प्यार, समझ और एक-दूसरे का सम्मान असल में शादी के वे महत्वपूर्ण तत्व है, जो रिश्तों को मजबूत बनाते हैं।
क्या शादी की फोटो परफेक्ट छवि इतनी जरूरूत है कि किसी की जान पर बन आये। दरअसल इसकी मूल भावना को फिर से याद करने और उसकी और लौटने का समय है कि शादी रिश्तों का बंधन है कोई फिल्मी सेट नहीं। परंपराओं को निभाने के लिए भीड़ की नहीं,खास रिश्तेदारों की जरूरत होती है।
शादी दो लोगों और दो परिवारों के लिए जीवनभर का सफर है। दिखावा इसमें रंग भर सकता है भाव नहीं। इसे छोड़ सच्चाई, प्यार और समझ को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस समस्या का समाधान समाज को ही खोजना पड़ेगा।