प्री वेडिंग फोटोशूट, समाज को लगी एक घातक बीमारी: राष्ट्रसंत पूज्य श्री कमल मुनि कमलेश
* परिवार बिखर रहे है
* पत्ति-पत्नी के रिश्ते तार-तार हो रहे
* सात जन्म का साथ निभाने वाले सात दिन में अलग हो रहे,
* कहीं कहीं तो फोटोग्राफऱ ही ले भागते है
* सोशल मीडिया पर अपने प्री वेडिंग के फोटो डाल कर मुसीबत में भी फंस रहे है
आजकल समाज को एक नई बीमारी लग गई है, वो है प्री वेडिंग फोटोशूट। एक सभ्य समाज को इस प्रकार की फूहड़ हरकतों को रोकने के लिए आगे आना ही होगा अन्यथा ये समस्या आने वाले समय में नासूर बन जायेगी और फिर पश्चाताप करने के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचेगा।
भारत की सनातन परपंरा में शादी के बंधन को बहुत ही पवित्र माना गया है किन्तु वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के चलते इस रिश्ते को भी तार-तार कर दिया गया है। सनातन संस्कृति में यानी हिंदू विवाह पद्धति में दुल्हन देवी स्वरुप लक्ष्मी होती है और दूल्हा विष्णु अवतार स्वरूप में माना जाता है। हमारे यहाँ तो सेहरा पहने लड़के से चरण स्पर्श तक नहीं करवाये जाते। जब हमारे पास ही विवाह की इतनी शानदार परपंराएँ, रीति-रिवाज है तो पाश्चात्य संस्कृति की इस बेहूदा परपंरा को क्यों अपनाया जा रहा है। इसके दुष्परिणामों से अनभिग लोगों को जागरुक करना होगा। इस समस्या को लेकर आज का समाज अनभिज्ञ जरूर बना हुआ है इसके दुष्प्रभावों का सही से आकंलन करने की जरुरत है। ये नई बीमारी सामाजिक,आर्थिक,स्वास्थ संबंधी,अलगाववाद, नकारात्मकता के साथ साथ परिवार की शांति को भी निगल लेगी।
कैसे लगी समाज को प्री वेडिंग फोटोशूट की घातक बीमारी? ये बीमारी हमारे समाज में तेजी से क्यों फैल रही हैं और इससे समाज पर क्या दुष्परिणाम हो रहे हैं? इस पर ईमानदारी से गहन मनन करने की जरूरत है।
हमारे समाज को प्री वेडिंग फोटोशूट की घातक बीमारी लगी तो पिछले पांच-छ सालों से ही हैं किंतु ये समाज में बहुत तेजी से फैल रही हैं। प्री वेडिंग फोटोशूट की शुरुवात होने का कारण बड़ा ही रोचक हैं। इवेंट मैंनेजमेंट वालों ने मालदार पार्टियों को कुछ नया इवेंट बताने के लिए प्री वेडिंग फोटोशूट की शुरुवात करवाई। शादी जैसे पवित्र संस्कार में ऐसे बेहुदा इवेंट की आवश्यकता ही नहीं हैं।
प्री वेडिंग फोटोशूट में होने वाले दूल्हा-दुल्हन अपने परिवार वालों की सहमति से शादी से पूर्व फोटोग्राफर के एक समुह को अपने साथ लेकर शादी के बाद पति-पत्नी हनीमून मनाने जाते हैं ऐसी सुंदर जगहों पर जाकर फोटोशूट करवाते हैं। कई फोटो दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे की बांहों में समाए हुए हैं ऐसे पोज भी लिए जाते हैं। कई बार दुल्हन कम से कम परिधानों में होती हैं। शादी के दिन एक बड़ी स्क्रीन लगा कर इसे दिखाया जाता हैं। हम किसी की भी शादी में जाते हैं दूल्हा-दुल्हन के जीवनसाथी बनने के साक्षी बनने एवं उन्हें आशीर्वाद देने। कल्पना कीजिए कि आप किसी की शादी में गए और वहां पर बड़ी सी स्क्रीन पर दूल्हा-दुल्हन पहले से ही एक-दूसरे के बाहों में समाए हुए हैं… तो ये दृश्य देख कर आपको कैसा लगेगा? यहीं लगेगा न कि इन लोगों को हमारे साक्षी होने की आवश्यकता ही नहीं हैं…फ़िर हमें शादी में बुलाया ही क्यों? क्योंकि हमारी हिंदू संस्कृति में शादी से पूर्व इतना खुलापन स्वीकार्य नहीं हैं। ये पाश्चात्य संस्कृति हैं।
ये फोटोशूट करवाने के लिए 1 से 5 लाख रुपए तक का खर्चा होता हैं। इस फोटोशूट को सही कहने वालों का कहना होता हैं कि शादी हमारे बच्चों की हैं…पैसा हमारा हैं…तो हमारे बच्चों की खुशी के लिए यदि हम 5 लाख रुपए खर्च करते हैं तो गलत क्या हैं? जिसके पास पैसा नहीं हैं वो ये फोटोशूट न करवाए। लेकिन जिसके पास पैसा हैं उन्हें क्यों नहीं करने देते? बात बराबर हैं। इंसान बच्चों की खुशी के लिए ही सब कुछ करता हैं। यदि हम बच्चों की खुशी के तौर पर इसे देखेंगे तो इसमें कुछ भी गलत नहीं हैं। लेकिन कोई भी इवेंट सही हैं या गलत इस बात का फैसला इसी से होता हैं कि समाज पर उसके क्या परिणाम हो रहे हैं। प्री वेडिंग फोटोशूट से कई शादियां टूट रही हैं। कहीं-कहीं तो दुल्हन ने दूल्हे की बजाय फोटोग्राफर से ही शादी कर ली! बच्चों की खुशी के लिए ही आम इंसान जिसके पास इतना पैसा नहीं हैं वो कर्जा लेकर भी यह फोटोशूट करवाएगा। इससे शादी के खर्च को लेकर पहले से टेंशन में जी रहे आम इंसान का टेंशन और बढ़ेगा। संस्कृत में कहा जाता हैं, चिंता समम नास्ति शरीर शोषणम्। मतलब चिंता जैसा शरीर का शोषण और कोई नहीं करता। टेंशन इंसान को अंदर से खोखला कर देता हैं। जिस फोटोशूट से समाज के ज्यादातर लोग टेंशन में जिएंगे वो फोटोशूट एक घातक बीमारी ही हुई न?
शादी में पहले से ही इतने सारे इवेंट्स होते हैं कि जिनकी तैयारी करने के लिए…कुंकू-चावल से लेकर तो मेहमानों की बिदाई तक का सामान जुटाते-जुटाते परिवार वालों को नानी की नानी याद आ जाती हैं। शादी का सामान जुटाने का हमारा टेंशन बढाने के लिए क्या हमें एक और इवेंट की आवश्यकता हैं? सिर्फ़ दो वाक्य सुनने के लिए इंसान शादी में इतना खर्चा करता हैं। वो दो वाक्य हैं, वाह भई क्या बढ़िया शादी की…दिल खोल कर पैसा खर्च किया!” सिर्फ़ ये दो वाक्य सुनने के लिए इंसान बच्चों की शादी से कई साल पहले से पैसा जमा पूंजी को पानी की तरह बहाता है।
इस बीमारी का असर अब धीरे –धीरे दिख भी रहा है प्री-वेडिंग यौन रोगों के खतरे को बढ़ाता है, जैसे कि एचआईवी, सिफिलिस, और गोनोरिया।प्री-वेडिंग गर्भधारण के खतरे को बढ़ाता है, जिससे अनचाहे गर्भधारण और गर्भपात की समस्या हो सकती है। प्री-वेडिंग मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि तनाव, चिंता, और अवसाद। प्री-वेडिंग सामाजिक अलगाव को बढ़ावा देता है, जिससे व्यक्ति को समाज से अलगाव का सामना करना पड़ सकता है। प्री-वेडिंग परिवारिक तनाव को बढ़ावा देता है, जिससे परिवार के सदस्यों के बीच तनाव और अव्यवस्था फैलती है। प्री-वेडिंग सामाजिक स्थिरता के पतन को बढ़ावा देता है, जिससे समाज में अपराध और अव्यवस्था फैलती है। प्री-वेडिंग आर्थिक बोझ को बढ़ा सकता है, जैसे कि गर्भधारण के कारण होने वाले चिकित्सा खर्च। प्री-वेडिंग शिक्षा और करियर पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि गर्भधारण के कारण होने वाली शिक्षा की रुकावट। प्री-वेडिंग सामाजिक सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि गर्भधारण के कारण होने वाली सामाजिक अलगाव। प्री-वेडिंग व्यक्तिगत संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि रिश्तों में तनाव और अव्यवस्था। प्री-वेडिंग मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि अवसाद और चिंता। प्री-वेडिंग सामाजिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जैसे कि सामाजिक अलगाव और अवमान। इस नये चलन का विरोध करिये नहीं तो हम परंपराओं को खो देंगे। प्री वेडिंग के नाम पर शादी से पहले ही हनीमून कराके संस्कृति का चीरहरण करने वाले – कभी दुल्हन को कभी सुट्टा, चिलम फूंकता दिखाते हैं,कभी हाथ में शराब का गिलास पकड़ा देते हैं,कभी नीचे से लहँगा गायब कर शॉर्ट्स पहना देते हैं। परंतु हम इनका विरोध नहीं करते बल्कि हमारे घर की बेटियाँ प्री-वेडिंग शूट के नाम पर इनका अनुकरण करने लगी हैं। पाश्चात्य संस्कृति की नकल कर दूल्हा-दुल्हन शेंपियन की बॉटल खोल रहे हैं या मंडप पर चुँबन ले रहे हैं। बहुत आवश्यक हो तो शालीन रहें, इस फूहड़पन से अगली पीढ़ी क्या सीखेगी?
समाज ने इस बीमारी का इलाज सामूहिक प्रयास से करना ही होगा नहीं तो सभ्य समाज का सपना साकार होने में रूकावट ही रुकावट है।