Friday, May 30, 2025
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सनातन संस्कृति के अभेद्य प्रहरी-कर्मकांडी ब्राह्मण 

  सनातन संस्कृति के अभेद्य प्रहरी-कर्मकांडी ब्राह्मण

एक जीवन प्रणाली है जो युगों-युगों से चली आ रही है। इस परंपरा की निर्बाध धारा को प्रवाहित रखने का कार्य यदि किसी ने किया है, तो वह है कर्मकांडी ब्राह्मण। सनातन धर्म केवल एक आस्था का नाम नहीं है, यह एक जीवंत परंपरा हैचाहे वह वृद्ध हो या बालक — यदि वह कर्मकांड, विधि-विधान, और शास्त्र के अनुसार जीवन जीता है, तो वह सनातन संस्कृति की सबसे बड़ी सुरक्षा-दीवार होता है।
वह केवल अनुष्ठान नहीं कराता, वह श्रद्धा, विश्वास और धर्मबोध का बीज घर-घर में बोता है। वह पूजा-पाठ में जुटा एक साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि वह एक संस्कृति का जीवंत वाहक है।

कर्मकांड का मर्म और उसका महत्व

अक्सर यह प्रश्न उठाया जाता है — “क्या कर्मकांड आवश्यक हैं?”
उत्तर स्पष्ट है — हाँ!
कर्मकांड केवल क्रियाएं नहीं हैं, वे स्मृति के सेतु हैं, जो हमें पूर्वजों से जोड़ते हैं। संस्कार, यज्ञ, पूजा, जप, व्रत और तीज-त्योहार — ये सब उस कर्मकांड का हिस्सा हैं जो व्यक्ति को समाज से, समाज को संस्कृति से, और संस्कृति को ब्रह्म से जोड़ता है। आज जो व्यक्ति अपने पूर्वजों के श्राद्ध को, संतान के संस्कारों को, विवाह की विधियों को निभा रहा है — वह सनातन का दीपक जला रहा है।

ब्राह्मणों पर सुनियोजित प्रहार — एक वैचारिक युद्ध

आपने देखा होगा कि आधुनिक समय में सबसे अधिक अपमानजनक टिप्पणियाँ ब्राह्मणों के लिए की जाती हैं।
उन्हें “ब्राह्मणवादी”, “शोषक”, या “दकियानूसी” कहकर बदनाम किया जाता है। यह कोई संयोग नहीं है — यह एक सुनियोजित षड्यंत्र है।

वामपंथी विचारधारा और पाश्चात्य मिशनरियों को भलीभाँति ज्ञात है कि यदि सनातन की रीढ़ को तोड़ना है, तो सबसे पहले कर्मकांडी ब्राह्मण को अपमानित और अलग करना होगा।
जब हिंदू अपने ही आचार्य, पुरोहित और वेदपाठी के प्रति घृणा करने लगेगा, तब वह बिना युद्ध के ही पराजित हो जाएगा।

ब्राह्मण पर आक्रमण वास्तव में एक सांस्कृतिक नरसंहार है, जो हमारी जड़ों को काटकर हमें अनाथ बनाना चाहता है।

हमारी उदासीनता — संस्कृति के लिए खतरा

आज जब किसी बच्चे का नामकरण संस्कार नहीं होता, जब विवाह के मंत्र मोबाइल से पढ़े जाते हैं, जब श्राद्ध का आयोजन “ओनलाइन ब्राह्मण” से करवाया जाता है — तब यह मान लेना चाहिए कि हमने अपनी संस्कृति से संबंध कमजोर कर लिया है।

अगर हम ऐसे ही चलते रहे, तो आने वाली पीढ़ियाँ तीज, त्योहार, व्रत, उपवास, यज्ञ, पूजा को केवल किताबों में पढ़ेंगी — जीवन में नहीं जिएंगी।

कर्मकांडी ब्राह्मणों का संरक्षण — हमारी धर्मरक्षा का मूल आधार

हमें समझना होगा कि कर्मकांडी ब्राह्मण का संरक्षण करना केवल किसी जाति विशेष की रक्षा नहीं, बल्कि धर्म और परंपरा की रक्षा है।जिस दिन घर-घर में ब्राह्मण का सम्मान फिर से लौटेगा, उसी दिन सनातन भी फिर से जागेगा।

हमारे पूर्वजों ने सदैव आचार्य को, पुरोहित को, वेदपाठी बालक को आदर दिया, उनकी सेवा की — तभी तो घरों में सुख-शांति और संस्कृति दोनों बनी रहीं। अंत में…कर्मकांडी ब्राह्मण चाहे बालक हो या वृद्ध — वह केवल एक व्यक्ति नहीं, वह जीवंत परंपरा का संवाहक है।उसे सामान्य मत समझो, वह सनातन सभ्यता का अखंड संरक्षक है। वह पूज्य था, पूज्य है, और पूज्य ही रहेगा।

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