भोजन में हो भक्ति भावनाः राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश
भोजन आरोग्य का मूल है। शांत चित्त, प्रसन्न मन और शुद्ध वातावरण में बैठकर भोजन करना सर्वोत्तम माना गया है। भोजन से पूर्व हाथ-पैर और मुख की सफाई करना, ईश्वर को स्मरण कर अन्न को प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिए। ताज़ा, सात्त्विक और ऋतु के अनुसार बना भोजन शरीर को पोषण देता है। अति तैलीय, बासी या अत्यधिक ठंडा-गर्म भोजन पाचन शक्ति को क्षीण करता है। भोजन को खूब चबा-चबाकर ग्रहण करें, जल भोजन के मध्य थोड़ा और भोजन के बाद सीमित मात्रा में पिएँ। भोजन के बाद थोड़़ा चलना और कुल्ला करना हितकारी होता है। भोजन संयम और श्रद्धा से करें — यही आरोग्य का रहस्य है।
‘खाना’ खाते खल सभी, संत करें ‘आहार’!
सज्जन ‘भोजन’ को करे, भाषा क्रिया प्रकार!
अर्थात: खाना दुष्ट लोग खाते हैं, भोजन सज्जन लोग करते हैं और आहार संत लोग करते हैं।
1. खाना – खाया जाता है…
2. भोजन – किया जाता है…
3. आहार – लिया जाता है…
खाना – काँटे चम्मच से खाया जाता है ..
भोजन – एक दाहिने हाथ से किया जाता है ..
आहार – दोनों हाथ से लिया जाता है…
दूसरों का पेट काटकर अपना पेट भरना – खाना
जीवन जीने के लिए पेट भरना – भोजन
त्याग, तपस्या, संयम और साधना के लिए पेट भरना – आहार
सादा और ताजा भोजन उत्तम
शरीर पंचतत्व से बना है। जब तक ये पांचों तत्व उचित परिमाण में रहते हैं, शरीर निरोगी बना रहता है। इसके कम-ज्यादा होने पर शरीर रोगों से ग्रस्त हो जाता है। वहीं, रस की कमी से शरीर में दुर्बलता आती है, जबकि अधिक मात्रा में सेवन से अनेक रोग शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जैसे-मधुर रस की अधिकता से रक्त विकार, श्वास, मधुमेह जैसे रोग होते हैं। खट्टे रस अथवा विटामिन सी की अधिकता से दांत, छाती, गला, कान, नाक आदि में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। कसैले रस की अधिकता से गैस बनना, हृदय की कमजोरी, पेट फूलना जैसी बीमारियां होती हैं।
व्यक्ति अपनी कार्यशैली में बदलाव नहीं ला सकता, किन्तु आहार के प्रति सजग रह कर ऊर्जावान हो सकता है। अच्छा आहार स्वास्थ्य और मन, दोनों को प्रफुल्लित करता है। अधिकांश लोग स्वाद को ही स्वस्थ आहार की कसौटी मानते हैं, वहीं बहुत से लोग महंगे और पौष्टिक पदार्थों के अत्यधिक सेवन को ही लाभप्रद मानते हैं। सच यह है कि स्वास्थ्य के लिए वही भोजन उत्तम होता है जो सादा और ताजा हो। फ्रिज भंडारण के लिए सही हो सकते है, किन्तु बने हुए भोजन को एक-दो दिन उसमें रखकर खाने से उसकी पौष्टिकता खत्म हो जाती है।
वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कम समय में पौष्टिक आहार को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। भोजन में आधा भाग साग और फल रहें और आधा भाग अन्न का हो। यही सन्तुलित और पौष्टिक आहार होगा।
वाग्भट का मंत्र
महर्षि वाग्भट के अनुसार ‘मित भुक’ अर्थात् भूख से कम खाना, ‘हित भुक’ अर्थात् सात्विक खाना और ‘ऋत भुक’ अर्थात् न्यायोपार्जित खाना। जो इन तीनों बातों का स्मरण रखेगा, वह बीमार नहीं पड़ेगा। सृष्टि के सभी प्राणी सजीव आहार ग्रहण करते हैं। प्रकृति प्रदत्त भोज्य उपहारों को उन्हीं रूप में ग्रहण करना स्वास्थ्यप्रद होता है। इनमें शरीर के पोषण के लिए आवश्यक तत्व विद्यमान होते हैं, परन्तु आजकल कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग के कारण इन्हें गरम पानी में धोकर उपयोग में लाया जा सकता है।
शरीर को निरोगी बनाना कठिन नहीं है। आहार, श्रम एवं विश्राम का संतुलन हर व्यक्ति को आरोग्य एवं दीर्घजीवन दे सकता है। आलस्य रहित, श्रम युक्त, व्यवस्थित दिनचर्या का पालन किया जाना चाहिए। स्वाद रहित सुपाच्य आहार लेना ही निरोगी काया का मूल मंत्र है।
एक भ्रम है कि पोषक तत्वों के लिए उच्च कोटि का आहार चाहिए। जैसे- प्रोटीन के लिए सोयाबीन, सूखे मेवे, वसा के लिए बादाम, अखरोट, पिस्ता, घी, विटामिन के लिए फल, दूध, दही इत्यादि। जिन खाद्य पदार्थों में ये तत्व पर्याप्त मात्रा में हैं, वे बहुत महंगे होने के कारण सर्वसाधारण के लिए सुलभ नहीं हो पाते। परन्तु यह जरूरी नहीं कि महंगे भोज्य पदार्थ ही पोषक हों।
साधारण भोजन को भी ठीक प्रकार से पकाया और खाया जाए तो उसमें भी पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व मिल जाते हैं। गेहूं, ज्वार, बाजरा, चना, मक्का, आदि अनाज तथा शाक, सब्जियां भी पोषक तत्वों से भरपूर हैं। इनका प्रयोग कैसे किया जाए, यह महत्वपूर्ण है।
अच्छा भोजन, अच्छा वार्तालाप और अच्छी नींद नहीं है तो जीने का लाभ ही क्या है ?
बाज़ार लाभ के लिए अंधा हो गया है ! पैसे लेकर भी सिंथेटिक फ्लेवर काम मे लाता है ।