Friday, May 30, 2025
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काश! हम भूख की तकलीफ और दर्द को कभी समझ पाएँ, अन्न की बर्बादी रोकें ताकि जरूरतमंद का पेट भरेः राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश

भारत भूख और गरीबी के दल दल से बाहर निकलने के लिए प्रयासरत है। देश और दुनिया में अभी भी करोड़ो लोग भुखमरी के शिकार है। चाहे विकासशील देश हो या विकसित देश हो। भुखमरी की समस्या पूरा विश्व झेल रहा है। कोरोना महामारी की गिनती भी इसी संकट से की जा सकती है जब लाखों लोग बेरोजगार होकर रोजी रोटी के लिए दर दर भटक रहे है। भारत सहित दुनिया के अनेक देशों ने संकट में अपने जरुरतमंद देशवासियों की मदद के लिए हाथ बँटाये है मगर यह नाकाफी है।

विश्व भूख दिवस (28 मई)

काश! हम भूख की तकलीफ और दर्द को कभी समझ पाएँ, अन्न की बर्बादी रोकें ताकि जरूरतमंद का पेट भरेः राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश

दुनियां से जब तक अमीरी और गरीबी की खाई नहीं मिटेगी तब तक भूख के खिलाफ संघर्ष यूँ ही जारी रहेगा। चाहे जितना चेतना और जागरूकता के गीत गालों कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अब तो यह मानने वालों की तादाद कम नहीं है कि जब तक धरती और आसमान रहेगा तब तक आदमजात अमीरी और गरीबी नामक दो वर्गों में बंटा रहेगा। शोषक और शोषित की परिभाषा समय के साथ बदलती रहेगी मगर भूख और गरीबी का तांडव कायम रहेगा। अमीरी और गरीबी का अंतर कम जरूर हो सकता है मगर इसके लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी पड़ेगी। प्रत्येक संपन्न देश और व्यक्ति को संकल्पबद्धता के साथ गरीब की रोजी और रोटी का माकूल प्रबंध करना होगा। दुनिया भर में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कमी नहीं आई है। यह संख्या आज भी तेजी से बढ़ती जा रही है। बिना इसके खाद्य दिवस मनाना बेमानी और गरीब के साथ एक क्रूर मजाक होगा। एक तरफ देश में भुखमरी है वहीं हर साल सरकार की लापरवाही से लाखों टन अनाज बारिश की भेंट चढ़ रहा है। हर साल गेहूं सड़ने से करीब 450 करोड़ रूपए का नुकसान होता है। भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सहायता कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद कुपोषण लगातार एक बड़ी समस्या बनी हुई है। भूख के कारण कमजोरी के शिकार बच्चों में बीमारियों से ग्रस्त होने का खतरा लगातार बना रहता है।

हर साल 28 मई को  विश्व भूख दिवस मनाया जाता है इस वर्ष 2025  की थीम “हर कोई खाने का हकदार है” है। यह थीम प्रत्येक के लिए पौष्टिक भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व पर प्रकाश डालती है।

 

 

 

 

 

इससे ज्यादा बड़ी विडम्बना क्या होगी जहां एक तरफ करोड़ों लोग खाने की कमी से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ खाना बर्बाद किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी नई रिपोर्ट में भी पुष्टि की है कि दुनिया भर में भोजन की बर्बादी और नुकसान को आधा करने से 15.3 करोड़ लोगों का पेट भरा जा सकता है।

दुनिया भर में भुखमरी से निपटने के लिए, हर साल 28 मई को विश्व भूख दिवस मनाया जाता है ताकि दुनिया भर में लाखों लोगों द्वारा सामना किए जा रहे मौन संघर्ष के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। साथ ही भूखमरी को समाप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों को प्रोत्साहित किया जा सके।

तमाम तकनीकी विकास के बावजूद, दुनिया भर में भूख लगातार एक मुद्दा बनी हुई है। खाने की बर्बादी को रोक लिया जाये तो करोड़ों लोगों का पेट भर सकता है,   इतना ही नहीं इससे बढ़ते उत्सर्जन में भी गिरावट आएगी, जो पर्यावरण और जलवायु की सेहत के लिए भी फायदेमंद होगा। खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक दुनिया भर में इंसानों के लिए पैदा किया जा रहा करीब एक तिहाई भोजन बर्बाद या नष्ट हो रहा है। नतीजन जहां जरूरतमंद लोगों को भोजन नहीं पहुंच पाता। वहीं बिना किसी मतलब के ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु में आते बदलावों की वजह बन रहा है।

हमें समझना होगा कि हम संसाधनों को यूं जाया नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे द्वारा बर्बाद हर निवाला किसी दूसरे का पेट भरने में मदद कर सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक इस बर्बादी को आधा करने से कृषि क्षेत्र से हो रहे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में चार फीसदी की गिरावट आ सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक 2021 से 2023 के बीच बर्बाद और नष्ट हुए भोजन में करीब आधा हिस्सा फल और सब्जियों का था, क्योंकि वे बहुत जल्द खराब हो जाते हैं और उनकी शेल्फ लाइफ बेहद कम होती है। इस बर्बाद और नष्ट हुए भोजन में करीब एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा अनाज का था। भारत में भी घरों में इस तरह की फल सब्जियों का खराब होना बेहद आम है, जिसे आप रोजमर्रा की जिंदगी में भी अनुभव कर सकते हैं, हालांकि हम बड़ी सहजता से इस बर्बादी को नजरअंदाज कर देते हैं।

बर्बादी में कमी से घटेंगी कीमते, आम लोगों को भी मिलेगा पोषण युक्त आहार

लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि दुनिया में ऐसे हजारों लोग हैं जो इस खाने की कमी से हर दिन दम तोड़ रहे हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन का अनुमान है कि 2030 में करीब 60 करोड़ लोग भुखमरी का सामना करने को मजबूर होंगें।

रिपोर्ट का कहना है कि खाद्य पदार्थों की होती बर्बादी और नुकसान को कम करने से वैश्विक स्तर पर कहीं ज्यादा लोगों के लिए भोजन उपलब्ध होगा। इससे खाद्य उपलब्धता बढ़ेगी और कीमतों में गिरावट आएगी। नतीजन समाज के कमजोर तबके तक भी पोषण युक्त आहार की पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी।  भोजन की बर्बादी में कटौती का यह लक्ष्य बेहद महत्वाकांक्षी है और इसके लिए उपभोक्ता और उत्पादक दोनों की ओर से बड़े बदलाव की आवश्यकता है। देखा जाए तो यह समस्या हम सबकी है और इससे हम सबको मिलकर निपटना होगा।

जब भूख की मार झेल रहे लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा है। विश्व खाद्य कार्यक्रम ने चेतावनी जारी की है कि दुनिया में भूख की मार झेल रहे लोगों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुँचने का जोखिम उभर रहा है। वैश्विक खाद्य संकट के कारण बड़ी संख्या में लोगों के लिये खाद्य असुरक्षा हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।  जलवायु व्यवधान, हिंसक टकराव और आर्थिक दबाव समेत अनेक विकराल चुनौतियों की पृष्ठभूमि में वैश्विक खाद्य संकट पनप रहा है। इन संकटों की वजह से विश्व भर में भूख की मार झेल रहे लोगों की संख्या, वर्ष 2025 के शुरुआती महीनों में 33 करोड़ 20 लाख से
बढ़कर 44 करोड़ 50 लाख तक पहुँच गई। भारत भूख और गरीबी के दल दल से बाहर निकलने के लिए प्रयासरत है। देश और दुनिया में अभी भी करोड़ो लोग भुखमरी के शिकार है। चाहे विकासशील देश हो या विकसित देश हो। भुखमरी की समस्या पूरा विश्व झेल रहा है। कोरोना महामारी की गिनती भी इसी संकट से की जा सकती है जब लाखों लोग बेरोजगार होकर रोजी रोटी के लिए दर दर भटक रहे है। भारत सहित दुनिया के अनेक देशों ने संकट में अपने जरुरतमंद देशवासियों की मदद के लिए हाथ बँटाये है मगर यह नाकाफी है। गौरतलब है विश्व खाद्य कार्यक्रम ने अपने जीवन रक्षक कार्यों के लिए 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार जीता है। विश्व   भूख दिवस के खिलाफ लड़ाई का एक दिन है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की स्थापना के उपलक्ष्य में समूचे विश्व में  इस दिन को मनाने का मूल उद्देश्य विश्व के भूखे और कुपोषित लोगों की दशा के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना और भूख के अभिशाप से मुक्ति पाना तथा इस समस्या के समाधान के ठोस उपाय करने के लिए सभी संबद्ध व्यक्तियों संस्थाओं को प्रोत्साहित करना है। यह दिन अब रश्मि होता जारहा है। ढोल नगाड़ा पीटने से न गरीबी दूर होगी और न हीं भूखे को खाना मिलेगा। यह हमारी जमीनी सच्चाई है जिसे स्वीकारना ही होगा।

 

 

 

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