ब्रह्मोस ने दिखाया अपना पराक्रम,
भारत के पास सतह से सतह पर मार करने वाला सामरिक प्रक्षेपास्त्र शौर्य भी है जिसकी मारक क्षमता 750 से 1900 किलोमीटर है। यह भारत का पहला हाइपर सुपरसोनिक मिसाइल है। भारत के पास पृथ्वी मिसाइल भी है और यह मिसाइल सेना के तीनों अंगों का हिस्सा है। स्वदेशी मिसाइलों की श्रृंखला में भारत के पास नाग मिसाइल है जिसका सफल परीक्षण 1990 में किया गया। यह मिसाइल अपनी विशेषताओं में टॉपअटैक-फायर एंड फॉरगेट के नाम से जाना जाता है। इसी तरह धनुष मिसाइल स्वदेशी तकनीकी से निर्मित पृथ्वी प्रक्षेपास्त्र का नौसैनिक संस्करण है। यह प्रक्षेपास्त्र परमाणु हथियारों को ले जाने की क्षमता रखता है। भारत ने 1990 में आकाश मिसाइल का परीक्षण किया जिसका शानदार और करामाती प्रदर्शन ऑपरेशन सिंदूर में देखने को मिला है। फिलहाल भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल दागकर दुनिया की सभी सैन्य व परमाण्विक शक्तियों को चकित कर दिया है।
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दरम्यान जिस आक्रामक तरीके से 15 ब्रह्मोस मिसाइलों के जरिए पाकिस्तान के 11 एयरबेस को तबाह किया उससे दुनिया अचंभित और पाकिस्तान भौंचक्क है। ब्रह्मोस के इस प्रहार से पाकिस्तान सीजफायर के लिए घुटने के बल आ गया और अब शांति की बात कर रहा है। उसे लगा था कि वह तुर्की के ड्रोन और चीनी एयर डिफेंस सिस्टम के दम पर भारत से दो-दो हाथ कर लेगा। लेकिन जब भारत ने अपने इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस सिस्टम के जरिए उसके सभी ड्रोन और मिसाइलों को आसमान में ही मार गिराया तो उसके होश ठिकाने आ गए।
ब्रहमोस मिसाइल: भारत की सबसे तेज़ सुपरसोनिक ताकत
सीजफायर के बाद भी पाकिस्तान ब्रह्मोस के डर से थर-थर कांप रहा है। वहीं दुश्मन देशों के भी हाथ-पांव फूले हुए हैं। गौर करें तो आज भारत दुनिया का पहला देश है जिसके पास समुद्र, जमीन तथा हवा से मार करने वाली सुपरसोनिक क्रूज ब्रह्मोस मिसाइल उपलब्ध है। जहां तक ब्रह्मोस का सवाल है तो यह भारत के डीआरडीओ और रुस के एनपीओ मशीनोस्त्रायोनिया का संयुक्त उद्यम है जिसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रुस की मस्कवा को मिलाकर रखा गया है।
यह रुस की पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है। यह मिसाइल भारत की अब तक की सबसे आधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली है और इसने भारत को मिसाइल तकनीकी में अग्रणी देश बना दिया है। ब्रह्मोस का पहला सफल परीक्षण 12 जून, 2001 को किया गया। मौजूदा समय में यह थल व नौसेना की थाती तथा भारतीय वायु सेना के लड़ाकू बेड़े की रीढ़ बन चुका है। यह मिसाइल सबसे पहले 2005 में नौसेना को मिली थी।
नौसेना के सभी डेस्ट्रॉयर और फ्रीगेट युद्धपोतों में ब्रह्मोस मिसाइल लगी हुई है। यह विश्व की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। यह आवाज से भी तीन गुना रफ्तार से दुश्मन के ठिकाने को तबाह करने में सक्षम है। यह ध्वनि की रफ्तार से 2.8 गुना तेज गति से लक्ष्य भेदती है। यह रफ्तार में अमेरिकी सेना की टॉमहॉक मिसाइल से भी चार गुना तेज है। यही नहीं उड़ान के दौरान ही आकाश में इसमें किसी विमान से इंंधन भरा जा सकता है। यह लगातार 10 घंटे तक हवा में रह सकता है।
ब्रह्मोस मिसाइल की उच्च तकनीक और सामरिक ताकत
यह मिसाइल पहाड़ों की छाया में छिपे दुश्मनों के ठिकाने को भी निशाना बना सकती है और जरुरत पड़ने पर इस मिसाइल को पारंपरिक प्रक्षेपक के अलावा उर्ध्वगामी यानी वर्टिकल प्रक्षेपक से भी दागा जा सकता है। आम मिसाइलों के विपरित यह मिसाइल हवा को खींच कर रेमजेट तकनीकी से उर्जा प्राप्त करती है। इसको मार गिराना लगभग असंभव है। इसके सफल परीक्षण से भारत की वायु सेना की मारक क्षमता कई गुना बढ़ गयी है।
इस मिसाइल की खूबी यह है कि इसे सबमरीन, वॉरशिप, एयरॉफ्ट और जमीन से भी लांच किया जा सकता है। ब्रह्मोस ऐसी मिसाइल है जो दागे जाने के बाद रास्ता बदल सकने में भी सक्षम है। लक्ष्य तक पहुंचने के दौरान यदि टारगेट मार्ग बदल ले तो मिसाइल भी अपना रास्ता बदल लेती है। 300 किलो एटमी हथियारों के साथ हमला कर सकने में सक्षम इस मिसाइल का निशाना अचूक है इसलिए इसे दागो और भूल जाओ भी कहा जाता है।
यह मिसाइल कम ऊंचाई पर उड़ान भरती है इसलिए राडार की पकड़ से बाहर है। यह 4321 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मार करने में सक्षम है। ऑपरेशन सिंदूर में इसके प्रदर्शन से चीन और पाकिस्तान की चिंता बढ़ गयी है। इसलिए कि इसने पाकिस्तान के 11 एयरबेस को तहन्स-नहस कर दिया है। वहीं चीन से बढ़ते टकराव के बीच भारत ने भारत-चीन सीमा पर सामरिक महत्व के कई स्थानों पर बड़ी संख्या में ब्रह्मोस मिसाइल की तैनाती कर दी है।
भारत की एमटीसीआर सदस्यता और ब्रह्मोस का रणनीतिक महत्व
चीन इस मिसाइल को अस्थिरता पैदा करने वाले हथियार के तौर पर देखता है। उसे डर है कि अरुणाचल प्रदेश में इस मिसाइल की तैनाती से तिब्बत और उसके युन्नान प्रांत खतरे की जद में आ गए हैं। याद होगा कि चीन के विरोध के कारण ही भारत की पूर्ववर्ती डॉ मनमोहन सिंह की नेतृत्ववाली यूपीए सरकार ने हनोई के साथ सौदा नहीं किया था। लेकिन अब चूंकि भारत ने एमटीसीआर की सदस्यता भी हासिल कर ली है ऐसे में चीन की आपत्तियों का कोई मूल्य-महत्व नहीं बचता है।
गौरतलब है कि एमटीसीआर की सदस्यता हासिल कर भारत ने अपने राजनीतिक और सामरिक प्रभाव को बढ़ा लिया है। अब वह आसानी से दूसरे देशों को अपनी मिसाइल तकनीक का निर्यात भी कर सकेगा। इसके साथ ही विकसित देशों से क्रायोजनिक इंजन की तकनीक भी खरीद सकेगा। इसके अलावा मिसाइल हमले से बचाव करने वाली रक्षा कवच तकनीक भी उसकी मुठ्ठी में होगी तथा वह अंतरिक्ष से जुड़ी तकनीक भी आसानी से हासिल कर लेगा।
सच तो यह है कि भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस मिसाइल के शानदार प्रदर्शन के बाद इसकी सौदेबाजी भी चीन को ध्यान में रखकर करेगा। अब भारत इस मिसाइल के जरिए दक्षिणी चीन सागर और हिंद महासागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता की धार को भोथरा करने में भी कामयाब होगा। याद होगा गत वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुपरसोनिक मिसाइल तैयार करने वाली कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस को उत्पादन बढ़ाने के निर्देश दे दिए थे।
ब्रह्मोस मिसाइल की वैश्विक मांग और रणनीतिक बढ़त
इसलिए कि कई देश इस मिसाइल को खरीदने के लिए लालायित हैं। ऑपरेशन सिंदूर में इसके उच्चतर प्रदर्शन से इसकी वैश्विक डिमांड बढ़ गई है। उल्लेखनीय है कि वियतनाम चीन से अपने बचाव के लिए 2011 से ही ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने को आतुर है। इसके अलावा मलेशिया, फिलीपींस और इंडोनेशिया भी ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने की कतार में हैं। भरत ने फिलीपींस के साथ इसका सौदा कर लिया है जिसकी पहली बैटरी भेजी जा चुकी है।
गौर करें तो ये सभी देश दक्षिणी चीन सागर में चीन की साम्राज्यवादी और धमकी नीति से परेशान हैं और चीन से मुकाबले के लिए अपने को सामरिक रुप से मजबूत करना चाहते हैं। भारत इस काम में उनकी मदद कर चीन की साम्राज्यवादी नीति पर अंकुश लगा सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत अगले 10 साल में 2000 से अधिक ब्रह्मोस मिसाइल बनाएगा। ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल को रुस से लिए गए सूखाई लडाकू जहाज में लगाकर दागा और पाकिस्तान की हवाई रक्षा को भनक तक नहीं लगी।
ब्रह्मोस को सुखाई से दागने के बाद पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन में हलचल मच गयी है। ब्रह्मोस के अलावा भी भारत के पास कई अन्य शक्तिशाली मिसाइलें हैं जिनकी ताकत का दुनिया लोहा मानती है। इनमें से एक अग्नि-1 मिसाइल है जिसका सफल परीक्षण 25 जनवरी, 2002 को किया गया। अग्नि-1 में विशेष नौवहन प्रणाली लगी है जो सुनिश्चित करती है कि मिसाइल अत्यंत सटीक निशाने के साथ अपने लक्ष्य पर पहुंचे।
भारत की स्वदेशी ब्रह्मोस मिसाइल शक्ति का प्रदर्शन
अग्नि-2 मिसाइल का परीक्षण जब 11 अप्रैल, 1999 को हुआ तो पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान की नींद उड़ गयी थी। क्योंकि इन दोनों देशों के कई बड़े शहर जद में आ गए हैं। इसी तरह अग्नि-3, अग्नि-4 और अग्नि-5 का सफल परीक्षण कर भारत अपनी ताकत का लोहा मनवा चुका है। भारत के पास सतह से सतह पर मार करने वाला सामरिक प्रक्षेपास्त्र शौर्य भी है जिसकी मारक क्षमता 750 से 1900 किलोमीटर है। यह भारत का पहला हाइपर सुपरसोनिक मिसाइल है।
भारत के पास पृथ्वी मिसाइल भी है और यह मिसाइल सेना के तीनों अंगों का हिस्सा है। स्वदेशी मिसाइलों की श्रृंखला में भारत के पास नाग मिसाइल है जिसका सफल परीक्षण 1990 में किया गया। यह मिसाइल अपनी विशेषताओं में टॉपअटैक-फायर एंड फॉरगेट के नाम से जाना जाता है।
इसी तरह धनुष मिसाइल स्वदेशी तकनीकी से निर्मित पृथ्वी प्रक्षेपास्त्र का नौसैनिक संस्करण है। यह प्रक्षेपास्त्र परमाणु हथियारों को ले जाने की क्षमता रखता है। भारत ने 1990 में आकाश मिसाइल का परीक्षण किया जिसका शानदार और करामाती प्रदर्शन ऑपरेशन सिंदूर में देखने को मिला है। फिलहाल भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल दागकर दुनिया की सभी सैन्य व परमाण्विक शक्तियों को चकित कर दिया है।