खुशखबरी – मीलॉर्ड की आंख खुली गई!
मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह की कर्नल सोफिया कुरेशी पर टिप्पणी पर FIR के बाद माफी को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत:संज्ञान लेते हुए अस्वीकार करते हुए तीन IPS की जांच कमेटी गठित करने का आदेश दिया है।
जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को उनकी अनर्गल बकबास के लिए दंडित किया ही जाना चाहिए लेकिन सबके साथ एक समान व्यवहार होना चाहिए सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर इस कसौटी पर खरा नहीं उतरा है या यूँ कहें कि न्याय का नाटक करने में भी असफल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का स्वत:संज्ञान बहुत रहस्य मय है।
देश की अनेकों महत्वपूर्ण घटनाओं पर ये गहरी निद्रा में रहता है लेकिन अपने वैचारिक विरोधियों पर गाज गिराने में सक्रिय रहता है वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के दोगले व्यवहार के अनेकों मामले हम सबके संज्ञान में है।
लेकिन निम्न तीन मामले सुप्रीम कोर्ट को तथाकथित न्यायपालिका सिद्ध करने के लिए काफी है।
1. अवमानना के एक मामले में गुजरात हाईकोर्ट द्वारा राहुल गाँधी को माफी मांगने का अवसर दिया गया राहुल गाँधी ने साफ मना कर दिया इस प्रकार दोष सिद्ध होने पर गुजरात हाईकोर्ट ने राहुल गाँधी को दो साल कारावास का दंड दे दिया सदन की सदस्यता चली गई सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत दोष सिद्ध सजा को रद्द ही नहीं किया मामले में आगे दोष सिद्धि पर ही रोक लगा दी दोषी को सजा नहीं क्योंकि वह हमारे खेमे का है।
2. ऐसे ही अवमानना के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से मना कर दिया अपने आप दोष सिद्धि हो गया इसी सुप्रीम कोर्ट ने अपने खेमे के दोषी वकील पर एक रुपये का दंड लगाकर न्यायपालिका के माथे पर कलंक की बिंदी सजा ली
दोनों ही मामलों में अपराध स्वीकार करने के बाद भी सजा नहीं।
3. गुजरात की ही एक तिकड़म बाज औरत तीस्ता सीतलवाड़ की गिरफ्तारी का आदेश हाईकोर्ट ने दिया पता नहीं उसमें क्या खासियत थी कि ग्रीष्मावकाश के अंतिम दिन शनिवार को एक निजी रंगारंग कार्यक्रम में मौजूद CJI किसी का आदेश पाते ही पांच बार बाहर आये फोन पर ही बेंच गठित कर तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत दिलवाने पर उनकी जान में जान आयी।
सुप्रीम कोर्ट का आज का आदेश और उल्लिखित तीन मामले जहाँ सुप्रीम कोर्ट के पक्षपाती होना सिद्ध करते हैं वहीं पूरी न्यायव्यवस्था के अलग वर्गीकरण दिखाते हैं।
पूरी न्यायव्यवस्था मय सुप्रीम कोर्ट के अलावा ऐसा कोई ताकतवर है जिसके इशारे पर सुप्रीम कोर्ट का CJI सांस लेता है उठता है बैठता है।यहाँ पर गौरतलब है कि इतने लंबे समय से पूरे देश के हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट की सोच और व्यवहार में गजब की एकरूपता कैसे है ??
जस्टिस यशवंत वर्मा को भी कोई नहीं भूला होगा जिसके घर नोटों के बोरे मिले थे उस पर क्या कार्रवाई हुई देश जानना चाहता है। यही कोलेजियम पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही आचार विचार के जजों की नियुक्ति है अगर ये ही लागू रहा तो 500 साल बाद भी यही परम् भ्रष्ट लेकिन सर्वशक्तिमान न्यायव्यवस्था मिलेगी।
-साभार