न्यूज़ चैनल्स के वार रूम से पाकिस्तान पर हमला, किसी भी मामले पर पहले हम पहले हम पत्रकारिता का गिरता स्तर
पूर्व सेना अधिकारी-एंकर अति उत्साह में
सरकार को जारी करनी पड़ी एडवाजरी
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जहां पूरा देश आक्रोश में है सरकार से पाकिस्तान पर कड़ी कार्रवाई करने की मांग हो रही है।
इसी बीच प्रत्येक न्यूज चैनल पर वार रूम शुरू हो गए हैं। भारत,पाकिस्तान पर कैसे हमला करेगा। लड़ाई कितने चरणों में होते हुए कहां तक पहुंचेगी। शुरूआत थल सेना,वायसेना या नेवी में से कौन करेगा। कौनसा फाइटर जेट पाकिस्तान में कितनी तबाही मचाकर कैसे लौटेगा। ड्रोन या मिसाइल अटैक कैसे होगा। पाकिस्तान कब परमाणु बम की धमकी दे सकता है।
आप सोच रहे होंगे कि मुझे वार रूम और इसमें बन रही रणनीतियों के बारे में इतनी जानकारी कैसे हैं। जबकि सेना और इससे जुड़ी हर जानकारी बहुत-बहुत ही गोपनीय होती है। जरा ठहरिए,मैं सेना या रक्षा मंत्रालय के मुख्यालयों में बने वार रूम की बात नहीं कर रहा हूं। मैं तो देश के लगभग हर न्यूज़ चैनल के स्टूडियो में बन गए ओपन वार रूम की बात कर रहा हूं। जहां बैठकर सालों पहले रिटायर्ड हो गए सेना के जनरल,अधिकारी और डिफेंस एक्सपर्ट पाकिस्तान से किस तरह युद्ध होगा या किया जाएगा, यह रणनीति बता रहे हैं। जबकि उन्हें भी पता है कि उनके रिटायरमेंट के बाद हथियारों, डिफेंस सिस्टम और युद्ध लड़ने के तरीकों और रणनीतियों में कितना बदलाव आ चुका है। वार रूम में एंकर भी ऐसे चिल्ला रहे हैं,मानो स्टूडियो में बैठे-बैठे ही आंतकियों और उनके आकाओं को मिट्टी में मिलाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कसम वो पूरी कर देंगे। पीछे स्क्रीन पर टैंक, मिसाइलें,लड़ाकू विमान,नेवी के जहाज ऐसे चलते हैं,मानो हमला कर दिया गया हो। इससे भी बढ़कर इन रिटायर्ड फौजी अफसरों को ये भी पता है कि भारत के किस मिलट्री एक्शन का जवाब पाकिस्तान किस तरह देगा? ऐसा लगता है मानो हमले की रणनीति बनाने की जिम्मेदारी दोनों देशों की सरकारों ने टीवी चैनल के एंकरों और रिटायर्ड फौजी जनरलों को दे दी है।
टीवी चैनल पर बने ये स्पेशल वार रूम वास्तविक समाचार का विश्लेषण इस तरह से कर रहे हो जैसे कि सब कुछ इन्हीं से पूछकर दोनों देश आगे की कार्रवाई करेंगे। भारत पाक का ही नहीं ये तमाम एंकर हर खास मौके पर स्टूडियों को ही युद्ध का मैदान बना देते है इसका उदाहरण हमने रूस-यूक्रेन युद्ध या फिर इजराइल फिलीस्तीन युद्ध में भी देखा है। इन टीवी डिबेट में सार की बात कम बेकार की बाते अधिक होती है। अचरज की बात तो ये है कि पर आने वाले पांच छ लोग ही होते है वो ही हर विषय के विषेशज्ञ होते है कि जैसे उनके अलावा और कोई कुछ जानते ही नहीं।
चुनाव के एक्जिट पोल में ये स्पेशल जीव कई बार मुंह की खा चुके है लेकिन इन पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
हमले या युद्ध जैसे राष्ट्रीय हित सहित किसी भी गंभीर से गंभीर विषय व मुद्दे को मजाक बना देना कोई टीवी चैनल वालों से सीखे। भारत,पाकिस्तान के आतंकी हमले का जवाब कब-कैसे देगा। निश्चित रूप से इस पर टाप लेवर पर मंथन चल रहा होगा। रणनीति और योजनाएं बन रही होगी। लेकिन पता नहीं टीवी चैनल वालों को इतनी जल्दी क्या है कि तुरंत हमला किया जाए? एंकर तो वैसे ही महाज्ञानी और अंतर्यामी है,उन्हें तो पता ही होगा कि किसी भी देश पर हमले से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके प्रभाव का आकलन किया जाता है। दूसरे देशों को अपने पक्ष में करने के लिए राजनयिक प्रयास करने होते हैं। मुंह पर भारत का साथ देने की कहने और पीठ पीछे पाकिस्तान की मदद करने वाले देशों के मिजाज को भांपना पड़ता है जैसे अमेरिका और चीन। मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया का आकलन होतख है। युद्ध लम्बा चला,तो हमारे देश पर भी उसके असर का मूल्यांकन होता होगा।
शायद मीडिया की इसी नासमझी और लापरवाही को लेकर आज केंद्र सरकार ने इन चैनलों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आज एडवाइजरी जारी करते हुए चैनलों को जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग करने की सलाह दी गई है। इसमें कहा गया है की रक्षा अभियान और सुरक्षा बलों की गतिविधियों का राष्ट्रीय सुरक्षा हित में सीधा प्रसारण ना करें। जैसा कि आमतौर पर देखा जाता है कि किसी भी आतंकी हमले के बाद जैसे ही सुरक्षा बल और देश की सुरक्षा एजेंसियां जवाब देने को सक्रिय होती है या मौके पर जांच के लिए पहुंचती है। न्यूज चैनल के कैमरे भी पहुंच जाते हैं और सीधा प्रसारण करते हैं। जैसा कि पहलगाम के बैसरन घाटी में आतंकी हमले के बाद भी देखा गया। इससे आतंकियों और उनके आकाओं को इस बात की जानकारी मिलती रहती है कि हमले के बाद हमारी एजेंसियां क्या कर रही है। एडवाइजरी में पिछले घटनाक्रमों में जिम्मेदार रिपोर्टिंग के महत्व को रेखांकित किया गया है और कहा गया है कि कारगिल युद्ध,मुंबई आतंकवादी हमले और कंधार अपहरण की घटनाओं में अनियंत्रित कवरेज के कारण राष्ट्रीय हितों पर प्रतिकूल असर पड़ा था। मुंबई हमले के दौरान आतंकियों को सुरक्षा एजेंसियों के हर एक्शन की पल-पल की जानकारी चैनलों के लाइव प्रसारण से ही मिल रही थी। जबकि कारगिल युद्ध के दौरान तो एक टीवी के एंकर ने सीमा पर सेना के बंकर से लाइव कर दिया, जिसे पाकिस्तानी सेना ने इंटरसेप्ट कर हमारी सेना की लोकेशन जान हमला कर दिया था।
एडवाइजरी में कहा गया है कि किसी भी सुरक्षा बल द्वारा किए जा रहे किसी भी आतंकवाद विरोधी अभियान का लाइव कवरेज शामिल हो,जहां मीडिया कवरेज को केवल सरकार द्वारा नामित अधिकारी द्वारा समय-समय पर ब्रीफिंग तक सीमित रखा जाएगा,जब तक की ऐसा अभियान समाप्त नहीं हो जाता। लेकिन आप किसी भी चैनल पर कार्यक्रम देख लीजिए, रिपोर्टर- एंकर सूत्रों के हवाले से संवेदनशील खबरें भी बताते रहते हैं। अजमेर में एक सेवा के पूर्व अधिकारी से मेरी बात हुई,तो उनका कहना था की सेना का कोई भी अधिकारी किसी भी रिपोर्टर से कोई बात नहीं करता है। वह सिर्फ सूत्रों का हवाला देकर अपनी मर्जी से सुरक्षा से जुड़ी खबरें बताते हैं,जो कि कभी-कभी देश के हित में नहीं होती। वैसे, सरकार को एक एडवाइजरी सेवा के पूर्व अधिकारियों और डिफेंस एक्सपर्टस को भी जारी करनी चाहिए कि वह भारत के पास जो हथियार हैं, उनकी खूबियां और खामियां टीवी चैनलों पर आकर ना बताया करें। अपनी राय इस हद तक दें, जिस हद तक राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा हो। इसके साथ ही टीवी चैनलों पर पाकिस्तान सेना के पूर्व अधिकारियों और वहां के टीवी चैनलों के एंकरों को भी डिबेट में बैठाने पर पाबंदी लगाई जानी चाहिए। लेकिन भारतीय चैनल के एंकर उन्हें जिस तरह लताड़ते हैं,गरियाते हैं,उससे ये आशंका जरूर होती है कि इन्हें हमारे चैनल कहीं इस बात के लिए पैसे तो नहीं देते कि हम जो बोले चुपचाप सुनते रहो। अगर ऐसा नहीं है तो वाकई पाकिस्तानी एंकर और वहां के पूर्व सेना अधिकारियों से बेशर्म शायद ही कोई हो। खैर, वैसे तो पूरा पाकिस्तान ही बेशर्म,बेहया,बेगैरत मुल्क है।