मानसिक आलस्य से बचें: प्रज्ञामूर्ति पूज्य श्री अक्षय ज्योति जी म.सा.
“आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः। नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति”
अर्थात “इंसानों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा दुश्मन होता है और परिश्रम जैसा कोई दूसरा मित्र नहीं है”.
मानसिक आलस्य जीवन के लिए अति घातक है। मानसिक आलस्य के कारण बहुत सारे लोग दुखी होते हैं, असफल होते हैं और इसी निराशा के कारण ही उनका जीवन तनाव से भी भर जाते हैं।
शरीर द्वारा किसी काम को करने की असमर्थता व्यक्त करना, यह शारीरिक आलस्य है। किसी काम को करने से पहले ही यह सोच लेना कि यह काम मेरे वश का नहीं है अथवा किसी काम को करने से पहले ही हार मानकर बैठ जाना यह मानसिक आलस्य है।
इस मानसिक आलस्य को दूर करने का उपाय है सदचिन्तन, सकारात्मक चिन्तन और अच्छे लोगों का संग। एक श्रेष्ठ विचार किसी व्यक्ति के जीवन को बदल देता है। सदैव श्रेष्ठ संग करें, सकारात्मक चिंतन करें ताकि आप मानसिक आलस्य से भी बच सकें।