पचेरी की कहानी (1): पतृक संपति को कैसे खुर्द-बुर्द कर रहे है उसक वारिस, फिर अपने कुल देवता के नाम पर लड्डू बांटते है वो भी अपने ही घर पर।
आज मन में आया कि मैं सबके बारे में लिखता हूं तो ना क्यों ना जिसका गुनहगार मैं भी हूं। उसके बारे में ही लिखता हूं।
अक्टूबर 2024 में तारीख याद नहीं वो भी हवाई जहाज की यात्रा के साथ भेजूंगा,,, इसी पोस्ट में।
वो भी जिस जमीन का भी जो सोदा हुआ और वह भी आज तक जहां तक की उस की रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ। और वह भी जो तथाकथित उसके मालिक जो कि उस जमीन का सबसे बड़ा वारिस है और उसके बेटे के कारनामे (भाग ।)
उस जमीन का पटा बनाने वाले सरपंच का
जिसका
ससुर की जेब ही रहती थी मोहर उसी ने बनाया पटा
जो ससुर जेब से मोहर लगता था कि उल्टी है कि सीधी।
मय फोटो के साथ,
यहा तक उसने तो श्मशान की चार दीवारी में भी अपना नाम लिख लिया मनरेगा में।
+ आज पट्टे बांटने की बात हो रही है तो शायद ही किसी को पचेरी कलां जैसा मिला हो।
एक बाप के तीन बेटे है राजस्व रिकार्ड में सबका नाम चढता है यहा तो “प्रेम” की ऐसी कृपया हुई कि एक ही के नाम का पट्टा बना दिया वो भी “संतोष” के साथ।
अभी जिस बात पर बात शुरु की थी ।
वही से फिर।
इंद्रसर से न्यांगताहङी_फिर हैदराबाद