कोप्पल कर्नाटक।
“निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाला संत धरती पर चलते फिरते तीर्थ के समान है” उक्त विचार राष्ट्र संत कमल मुनि जी कमलेश ने मूर्ति पूजक सतीयों से आध्यात्मिक मिलन के समय विचार व्यक्त किये। कोप्पल जैन स्थानक भवन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए

महाराज श्री ने आगे कहा कि जिस दिन संतों में परस्पर प्रेम को सद्भाव की गंगा बहैगी राम राज्य आ जाएगा।
उन्होंने कहा कि धर्म गुरुओं को धर्म ग्रंथ की सही व्याख्या जनता के सामने प्रस्तुत करनी चाहिए ताकि जनता को सन्मार्ग मिले।
मुनि कमलेश ने कहा कि संत की कोई जाति नहीं होती, उनको संकीर्ण नजर से देखना धर्म और परमात्मा का अपमान करने के समान है।
राष्ट्र संत ने कहा कि प्रवचन के साथ प्रैक्टिकल जोड़ा जाएगा , तभी युवा पीढ़ी में श्रद्धा और आस्था का निर्माण होगा, धर्म लोकप्रिय बनेगा। जिस संत में सद्भाव नहीं वह संत तो क्या इंसान कहलाने का अधिकारी भी नहीं है।
जैन संत ने बताया कि जिनकी निगाहों में माटी और सोना समान होता है वही संत विश्व पूजनीय बनते हैं। सदाचार सात्विक प्रेम और करुणा से ओत-प्रोत होने वाले संतों का बिना बोले जनता में प्रभाव पड़ता है।
विहार ग्रूप के युवाओं को संबोधित करते हुए राष्ट्रसंत ने कहा परिश्रमी बनें।
जब तक मनुष्य पुरुषार्थ नहीं करेगा, परिश्रम में अपना पसीना नहीं बहायेगा, तब तक किसी प्रकार के श्रेय का अधिकारी नहीं बन सकता। लक्ष्मी श्रम और उद्योग की ही अनुगामिनी होती है। भाग्य, कठिन परिश्रम का ही दूसरा नाम है। प्रकृति के सारे जड़ चेतन अपने कार्य में लगे रहते हैं। चींटी को भी पल भर चैन नहीं रहता। मधुमक्खी जाने कितनी लम्बी यात्रा कर बूंद बूंद मधु जुटाती है। फिर मनुष्य को तो बुद्धि मिली है, विवेक मिला है। उसके द्वारा अकर्मण्य रहकर सफलता की कामना करना व्यर्थ है।
नगर प्रवेश पर अभय कुमार मेहता, अशोक तालेड़ा, महेंद्र चोपड़ा, महेंद्र लूकड़ ,अशोक पारख, विहार ग्रुप के युवाओं ने समर्पित भाव से सेवा का लाभ लिया। 14 और 15 अप्रैल को जैन स्थानक भवन में प्रात: 9 बजे से 10:15 बजे तक प्रवचन का आयोजन होगा ।