वैज्ञानिक श्रीहनुमान
आज चैत्र शुक्ल पूर्णिमा है। इसी दिन अनुपम सुन्दरी अंजना और वायुदेव पवन के मिलन से महान्, धैर्यवान, महातेजस्वी, महाबली, महापराक्रमी हनुमान का जन्म हुआ। हनुमान बचपन से पराक्रमी, बुद्धिमान और अन्वेषी प्रवृत्ति के थे। उनके बारे में हनुमान चालीसा में कहा गया है कि
“अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता,
अस बार दीन जानकी माता।
राम रसायन तुम्हरे पासा,
सदा रहो रघुपति के दासा।।”
यहां रसायन संभवत: उन रासायनिक तत्वों को दर्शाता है, जिनकी जानकारी हनुमान को थी तथा नौ निधि संभवत: स्वर्ण, रजत, ताम्र, लौह, लेड, टिन, पारद, कार्बन और गंधक हैं। ये सबसे प्राचीन खोजे गए तत्व माने जाते हैं। मानव सभ्यता के विकास में इनका बड़ा योगदान है। इसी कारण इन्हें निधि यानी खजाना, रत्न की श्रेणी में रखा गया है। अनुसंधान में पाया गया है कि अखंड भारत में स्वर्ण की प्राचीन खानें थीं और आज भी हैं। हालिया अनुसंधान में बिहार के मगध प्रदेश में सोना के अकूत भंडार मिलने के प्रमाण मिले हैं। इसी क्षेत्र में एक बड़ी नदी बहती है जिसका नाम ही सोन नदी है। जाहिर है इन खानों की जानकारी पहले के लोगों को थी। इससे बने आभूषण और अन्य चीजें प्राचीन काल से भारतीयों के लिए आकर्षण रहे हैं तथा स्वर्ण भस्म भारतीय आर्युवेद की मुख्य औषधि रही है।
इसी प्रकार रजत के बर्तनों के इस्तेमाल को भारत में प्रधानता दी गई है तथा इसे शुद्ध माना गया है। जाहिर है भारतीय शुरु से रजत के वैज्ञानिक महत्व से परिचित थे। सिकंदर महान जब फारस और फिनीशिया जीतते हुए भारत पर हमला करता है तो उसके सैनिकों पर आंतों की बीमारियों ने धावा बोल दिया, जिससे वे लोग बहुत घबरा गए। सैनिकों ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया और घर लौटने की इच्छा प्रकट की। इन बीमारियों का एक रहस्य था। बात यह थी कि सिकंदर की सेना के अफसरों पर इन बीमारियों का तनिक भी असर नहीं हो रहा था, हालांकि वे लोग भी साधारण सैनिकों की तरह लड़ाई की सभी मुसीबतों का बोझ उठा रहे थे। इस घटना के 2000 साल बाद वैज्ञानिकों को इसका भेद पता चला। बात यह थी कि साधारण सैनिकों के गिलास टिन के बने होते थे जबकि अफसर लोग रजत के गिलासों में पानी पीते थे। रजत पानी में घुलकर एक कोलाइड विलयन बनाता है जो रोगजनक कीटाणुओं को मार देता है। हालांकि जल में रजत की विलयनशीलता बहुत कम है, परंतु कीटाणुओं को मारने के लिए इतनी मात्रा ही काफी होती है।
इसी तरह अन्य निधियां भारतीय प्राचीन परंपरा से प्रयोग में लाते रहे हैं और हनुमान को इन निधियों का दाता कहा गया है जो कि आम जन के लिए काफी उपयोगी रही हैं। अकारण नहीं है कि इसी वैज्ञानिक- अनुसंधानात्मक प्रवृत्ति के कारण भारतीय पुराण में श्रीहनुमान को सात चिरंजीवी में से एक और प्रथम चिरंजीवी में रखा गया है और भारत भर में हनुमान सबसे अधिक पूजे जाते हैं। इनके सबसे अधिक मंदिर है, क्योंकि भारतीय परंपरा में हमेशा विद्या, बुद्धि का स्थान सर्वोपरि रहा है।
जय श्रीहनुमान – जय बजरंगबली
– डॉ सौरभ कुमार