घनश्यामदास कानोडिया द्वारा रचित भजन गंगा

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घनश्यामदासा कानोडिया द्वारा रचित भजन गंगा

 

दो शब्द

पावन गंगा के प्रति अतीत से ही भारतीय जनमानस में एक विशेष आकर्षण, लगाव व श्रद्धा एवं प्रेरणा के दर्शन होते हैं। देश की संस्कृति के आधार स्तंभ ऋषि मुनियों ने गंगा तट पर समाधिस्थ होकर जो विश्व को दिया है वह चिरस्थायी है। उद्गम से लेकर सागर में लीन होने के समर्पण समारोह तक सभी कुछ स्तुत्य है। श्री घनश्याम जी कानो।…. ने अपने अन्तरस्थ से समय-समय पर निकली सरल सरल शब्दावली को भजन गंगा के रूप में संग्रहित कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये हैं। जनहित में एसी मेरी मान्यता है।

आपके भजन की भाषा सरल सुबोध ,कठिन शब्दाडंबर से मुक्त होते हुए भी प्राचीन संत भक्तों की भाँति भावना पूर्ण भक्ति वर्तमान काल की चकाचौंध से भ्रमित चमत्कृत प्रवृत्ति निवृत्ति के ज्ञान से अनजान लोगों के उद्बोधन, ब्रह्मसत्य,जगतमिथ्या का उद्घोष काल की अजेय शक्ति को जानने की चेष्टा सूचक भक्तों के समर्पित जीवन कर एकमात्र रक्षक व आधार परमपिता परमात्मा के प्रति झुकाव संसार के सभी संबद्ध मिथ्या स्वार्थमयी है। ऐसे ऐसे विचार आपके भजनों में सर्वत्र पढ़ने को मिलेंगे। जीव के जीवन का एकमात्र आश्रय है राम अशरण के शरणदाता हैं राम, भवसागर से पार करने वाले राम, संकट मोचक राम ही सर्वस्व है। शरण्य एवं वरण्य है, यही भाव रह रहकर भजनों के माध्यम से,माँ की प्रेरणा से बाबा जयरामदास के आशीर्वाद से ह्रदय आकाश में,धन रूप में हैं,बरसे है, जिनको आप स्वयं गाकर तन्मय होकर अनुभव कर सकेंगे।

आपका जन्म 25 मई 1925 को महेंद्रगढ़ (कानोड) नगर में स्वनामधन्य स्वर्गीय पिता श्री रामेश्वर दयाल के यहां नौबता वाले सुप्रसिद्ध परिवार में हुआ। आपकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई। आपने पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी रत्न की परीक्षा दी। बचपन से ही परमहंस बाबा जयरामदास (पाली महेंद्रगढ़) के प्रति अटूट श्रद्धा व विश्वास रहा। उन्हीं के आशीर्वाद से आज तक आप सफलता के साथ आगे बढ़ रहे हैं। देश की स्वतंत्रता के समय जो सांप्रदायिक उन्माद का पूर्ण वातावरण बना उससे प्रभावित होकर इनका समस्त परिवार हैदराबाद आकर दवा के व्यवसाय में संलग्न हो गया। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में विशेष स्थान बना लिया। दवा का व्यवसाय शारीरिक स्वच्छता के लिए हैं। आपका भजन गंगा संगम मानव की मानसिक व्याधि की शांति हेतु सुखद प्रयास है जैसे-
1. भजन बिना हुए नहीं पार रे,
नो तेरी डूब जाए बीच मझदार रे

2. देख देख कर संगी साथी काहे को इतरात है प्राणी
अंत समय कोई साथ ना देवे
दो दिन की है यह जिंदगानी

3. कभी सोंचा नहीं कुछ बिचारा नहीं
नाम से श्रेष्ठ कोई सहारा नहीं

4.चार दिनों की चांदनी फिर अंधेरी रात
राम नाम का दीपक उर धरले कहता सांची बात

आपके भजनों में ऐसी सच्ची बात, संदेश, प्रेरणा, उद्बोधन के रूप में प्रायः पढ़ने को मिलेंगी। जो जीवन को सार्थक बनाने के मार्गदर्शक दीपक का काम करेगी। लेखक की भावना का सतत प्रवाह भजन गंगा के रूप में प्रवाहित होकर आप तक पहुंच रहा है। मानसिक तरंगों में बहते हुए श्रद्धा सुमन आप स्वीकार करें।

तरंगे भजन गंगा की
उमंगे मन में भर देंगी
हरगी पीर तन मन की
सफल जीवन को कर देंगी।

शिव गौड़ रिवा शास्त्री महेंद्रगढ़ हरियाणा

संपूर्ण भजन इस लिंक पर

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