Wednesday, May 21, 2025
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मानवता के लिए महावीर के सिद्धांत धारणा करने ही होंगे : राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश 

आज की स्थिति देखों पूरा संसार कहीं ना कहीं समस्याओं का सामना कर रहा है। आमजन सुरक्षित माहौल में जीना चाहता है लेकिन वो भयभीत है। पता नही कब क्या हो जाये। दो विचारधारा के लोग आपस में लड़ते है पर उनका क्या जो निर्दोष होकर भी अपना सबकुछ स्वाहा होते देखकर जीवन जीने की भीख मांगते है। - रूस यूक्रेन युद्ध मान लो -इजराइल का मान लो - बांग्लादेश में हो रही राजनीतिक अस्थिरता या फिर कोई और देश हर की अपनी समस्या किंतु उसका निवारण कैसे होगा इसका हल सोचने की इनके पास शक्ति ही नहीं। अपने आपको सर्वशक्तिमान बनाने की होड़ मानव को खत्म कर देंगी। -अभी भी समय बचा है उसका सदुपयोग जगत कल्याण में करो। कही भूकंप, कही बाढ तो कही आगजनी आखिर क्यो हो रही है, अपनी सुविधा के मनुष्य ने प्रकृति के साथ छेड़खानी की है।

मानवता के लिए महावीर के सिद्धांत धारणा करने ही होंगे : राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश 

गदग कर्नाटक में विराजमान राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश

मनुष्य अगर अपने जीवन में लेशमात्र भी महावीर को अपने जीवन में उतार ले तो उसका जीवन सफल हो जायेगा।

भगवान महावीर ने प्राणीमात्र को संयमित और अपनी दिनचर्या में रहने का उपदेश दिया है। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का आज 2624वां जन्म कल्याणक है। महावीर ने पूर्ण अहिंसा पर जोर दिया, तभी से ‘अहिंसा परमो धर्म” जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत माना जाने लगा। महावीर ने लोक कल्याण का मार्ग अपनाकर विश्व को शांति का संदेश दिया। उनका स्पष्ट मानना था कि निर्वाण प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को आचरण, ज्ञान और विश्वास को शुद्ध करना चाहिए। महावीर जानते थे कि आने वाला समय दु:खों से भरा होगा। मनुष्य के मन, वचन और काय की क्रियाएं ज्यादा नकारात्मक रहेंगी। दूसरों को देखने की बजाय खुद को और अपनी चर्या को देखना चाहिए। दूसरों के चक्कर में रहोगे, तो स्वयं संसार के चक्कर लगाते रहोगे। जैसी भी परिस्थिति हो, उसमें रहना सीख लेना ही सुख का आधार है। महावीर ने यह भी कहा कि सुख की मात्रा धीरे-धीरे कम होगी। इसलिए तुम सुख की बजाय दु:ख में ही सुख का अनुभव करने की कला को सीख लेना। इस तरह तुम जहां रहोगे, वहां सुख का अनुभव करोगे।

महावीर कहते हैं कि तुम दु:खी हो, यह तुम्हें पता है। फिर क्यों रो-धोकर दूसरों को बताते हो? क्यों मनोबल कमजोर करते हो? कमजोर व्यक्ति न तो सकारात्मक सोच सकता है और न वर्तमान परिस्थितियों से लड़ सकता है। इसके लिए इन परिस्थितियों को समझना ही होगा, तभी मनोबल बढ़ेगा। यह तय है कि दु:ख अशुभ कर्मों का फल होता है। यह जाएगा हमारे शुभकर्मों के फल से ही। महावीर कहते हैं कि कोई इंसान तुम्हारे साथ कुछ भी करे पर तुम सकारात्मक ही सोचना। महावीर कहते हैं कि मन प्रसन्न रखोगे, तो मानसिक रोग नहीं होगा। अपने तन को प्रसन्न रखोगे, तो शारीरिक रोग नहीं होगा और वचन स्वच्छ रखोगे, तो आर्थिक रोग नहीं होगा। इन तीनों को पवित्र रखने के लिए महावीर ने अलग-अलग स्वरूप और शब्दों में शिक्षा दी। इन्हीं में से एक है अनर्थदंडविरतिव्रत शिक्षा। इसका अर्थ है बिना वजह मन, वचन और काय से किए जाने वाले कार्य का त्याग करना। अनर्थदंडव्रत कई प्रकार से होता, पर महावीर ने इसे पांच भागों में बांटा। पाप का उपदेश देना (पापोदेश), जिनसे हिंसा हो ऐसे साधन दूसरों को देना (हिंसादान), दूसरों के बारे में बुरा सोचना (अपध्यान), ऐसा साहित्य पढऩा जिससे बुद्धि मलिन हो (दु:श्रुति)। बिना वजह प्राकृतिक साधनों और वस्तुओं को नुकसान पहुंचाना (प्रमादचार्य)। इन तरह के कार्य करने को महावीर ने अनर्थदंड कहा है और ऐसा नहीं करने वाले को अनर्थदंडविरति व्रतधारक कहा है। बिना प्रयोजन बोलने, अशुभ शब्द, खोटे वचन, हंसी उड़ाने, भविष्य की चिंता कर सामग्री का संग्रह करने से अनर्थदंड ज्यादा होता है। यानी ऐसी बातों से इन पांच व्रतों में दोष लगते हंै।

महावीर के उपदेश को आत्मसात करने वाले हिंसा का तांडव नहीं कर सकते। यूक्रेन और रूस युद्ध से परिवार बिखर गए, बच्चे अनाथ हो गए, नागरिकों को अपना ही देश छोड़कर जाना पड़ा। महावीर के सिद्धांत का पालन किया होता, तो धीरे-धीरे ही सही पर वार्ता से समाधान हो जाता। आज मानव वृक्ष, भूमि और जल आदि प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर रहा है। इससे अकाल, भूकंप जैसी आपदा के साथ मानसून तक बिगड़ रहा है। मानव जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है। जलस्तर कम हो गया, वृक्ष कम हो गए, कब-कहां भूकंप आ जाए, पता नहीं चलता। यह प्राकृतिक संसाधनों के अपमान का ही फल है। बिना प्रयोजन एक देश दूसरे देश को, एक संस्थान दूसरे संस्थान को, एक व्यक्ति दूसरे को कुछ भी बोल रहा है। इन सबसे अंदर ही अंदर द्वेष पनप रहा है और वही दुश्मनी और युद्ध में बदल जाता है। हम तरक्की के बारे में सोचने की बजाय, दूसरों का नुकसान करने के बारे में सोचते रहते हैं। फिर दु:खी रहते हैं। महावीर के सिद्धान्तों को आत्मसात किया होता, तो व्यक्ति दु:खी नहीं होता।

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