Wednesday, May 21, 2025
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Homeदेश/दुनियाआज के ही दिन खुला था पहला हिन्दू मिलिट्री स्कूल .

आज के ही दिन खुला था पहला हिन्दू मिलिट्री स्कूल .

#रामनवमी_विशेष ..

1937 में रामनवमी के दिन डॉ बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने पहला हिन्दू मिलिट्री स्कूल .

“भोसला मिलिट्री स्कूल” की स्थापना की थी ताकि हिन्दुओ का सैनिककरण किया जाए जिससे सावरकर जी प्रेरित हुए थे..

 

आखिर कौन थे हिन्दू राष्ट्र के महान चिंतक डॉ बालकृष्ण शिवराम मुंजे…!!!

 

खिलाफत आंदोलन के दाग अभी छूटे भी नही थे, उसी दौरान नागपुर में एक सोच आकार ले रही थी। ये चिंतन उस समय चल रहा था जब तिलक जी की मृत्यु हो चुकी थी और गांधी एवं छोटे बड़े नेहरू देश की दशा व दिशा तय कर रहे थे।

 

नागपुर में बैठा यह शख्स सोच रहा था कि स्वराज्य व आजादी की आड़ में सत्तालोलुप नेतृत्व की कोशिशों के चलते उपेक्षित हिन्दू समाज कब तक अपनी आजादी बचा पायेगा। वो ऐसा इसलिए सोच रहे थे क्योंकि तब भारत के स्वाधीनता आंदोलन का नेतृत्व “मोपला नरसंहार” के पहले और बाद में भी “असंभव एकता” की मृग-मरीचिका के पीछे भाग रहा था।

 

ये वही डॉ बालकृष्ण शिवराम मुंजे हैं, जिनका जिक्र कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोकसभा चुनाव के दौरान एक इंटरव्यू में किया था। ये वही डॉ बालकृष्ण शिवराम मुंजे हैं, जिन्होंने न केवल भारतवर्ष में अपितु लंदन में भी स्वाधीनता का बिगुल बजाया था। लंदन के इंडिया हाउस में देश के अमर क्रांतिकारियों वीर सावरकर, मदनलाल आदि आदि के प्रेरणास्रोत बने।

 

डॉक्टर बालकृष्ण शिवराम मुंजे हिंदू राष्ट्र के कर्णधार जो उपेक्षा का जीवन व्यतीत कर श्रेयहीन मृत्यु को स्वीकार करने वाले महान तपस्वी, हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रवर्तक नेता थे। जिन्हें हिंदू महासभा के अतिरिक्त अन्यंत्र कोई सम्मान नहीं मिला।

 

12 दिसंबर 1872 छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में जन्मे बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने अपनी प्राथमिक शिक्षा नागपुर से प्राप्त की। इसके पश्चात मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर बने। 1898 में उनकी तिलक जी के साथ प्रथम भेंट हुई और राजनीतिक क्रांति के बीज का अंकुर फूटा।

 

1899 में डॉक्टर मुंजे अफ्रीका में चल रहे बोअर युद्ध के चिकित्सा दल में ब्रिटिश सरकार द्वारा चुनकर भेजे गए एकमात्र भारतीय डॉक्टर थे। अफ्रीका से लौटकर उन्होंने नागपुर में एक नेत्र चिकित्सालय खोला और “नेत्र-चिकित्सा” नामक संस्कृत ग्रंथ लिखा।

 

1905 नागपुर कांग्रेस अधिवेशन के तत्काल पश्चात बनारस में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में डॉक्टर मुंजे के समर्थन पर तिलक जी ने स्वदेशी का आह्वान किया और पुणे में लकड़ी के पुल के पास विदेशी वस्त्रों की होली का आयोजन कर युवा क्रांतिकारी वीर सावरकर के हाथों उस होली का दहन किया। 1923 स्वराज पक्ष से नागपुर से चुनाव जीतकर लेजिसलेटिव काउंसिल में डॉक्टर मुंजे ने पदापर्ण किया।

 

अंडमान की कालकोठरी से छूटे गदर क्रांतिकारी गणेश दामोदर सावरकर (बाबाराव) ने क्षय रोग से ग्रस्त होते हुए भी नागपुर जाकर डॉक्टर मुंजे से भेंट की और विनायक दामोदर सावरकर की मुक्ति के लिए समर्थन मांगा।

 

डॉक्टर मुंजे ने इस विषय में पंडित नेहरू और महात्मा गांधी से समर्थन मांगा लेकिन दोनों ने ही उन्हें निराश किया। अन्ततः गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से आहत होकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।

 

अकोला में गणेश विसर्जन के दौरान मस्जिद से हुए पथराव के विरोध में हिंदू महासभा के नेता मामासाहेब जोगलेकर के प्रयास को सबल करने हेतु “तरुण हिंदू सभा” का गठन करने का काम किया।

 

अंडमान की कालकोठरी से लौटकर लाहौर में 1922 में “हिंदू स्वयंसेवक संघ” की स्थापना करने वाले भाई परमानंद छिब्बर को 1923 में बनारस हिंदू महासभा अधिवेशन में समाविष्ट कर संगठन को और बल दिया।

 

डॉ मुंजे स्वातंत्र्य साप्ताहिक के संपादक, हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर बलिराम हेडगेवार जी के राजनीतिक गुरु थे। बंगाल दंगों के दौरान उत्पन्न हुई निराशा से उन्होंने डॉ हेडगेवार जी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाने की प्रेरणा दी। बाबाराव द्वारा लिखे, हरिदास शास्त्री द्वारा शुद्ध किये, ध्वज-वंदना और मातृ-वंदना के साथ ही भगवा ध्वज स्वीकार कर हिंदू महासभा को पूरक संगठन के रूप में 1925 में खास दशहरे के दिन मोहिते-बाड़ा नागपुर में हिंदू स्वयं सेवक संघ, तरुण हिंदू सभा और गढ़मुक्तेश्वर दल को मिलाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पहली शाखा लगी।

 

अभ्यंकर जी के साथ पक्षान्तगर्त विवाद में उन्हें स्वराज्य पक्ष छोड़ना पड़ा और वह पूर्णकालिक हिंदू महासभाई बने। रोम, लंदन, जर्मनी, स्पेन, अफ्रीका होकर आये डॉक्टर मुंजे एक सैनिक प्रक्षाला बनाने के इच्छुक थे। इसी क्रम में नासिक में उन्होंने “सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एजुकेशन सोसायटी” की स्थापना की।

 

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1937 में रामनवमी के दिन “भोसला मिलिट्री स्कूल” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मातृभूमि की रक्षा के लिए युवा हिन्दुओं को सैन्य प्रशिक्षण व सनातन धर्म की शिक्षा देना था। अपने अंतिम दिनों में डॉक्टर मुंजे सभी से उपेक्षित होकर भोंसला मिलिट्री स्कूल की प्रांगण में बनी झुग्गी में रहते थे। 4 मार्च 1948 को घुड़सवारी के दौरान घोड़े से गिरकर उनका देहावसान हुआ।

 

संघ 2020 से सैन्य स्कूल की श्रृंखला सैनिक विद्या मंदिर के नाम से खोलने जा रहा है। इसकी पहली शाखा उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के शिकारपुर में खोली जा रही है। इस स्कूल का नाम रज्जू भैया सैनिक विद्या मंदिर होगा। इन स्कूलों को आरएसएस की शिक्षा शाखा विद्या भारती चलाएगी।

 

एक बार फिर आरएसएस डॉ मुंजे की विरासत को सहेजती हुई दिख रही हैं। डॉ मुंजे के “भोंसला मिलिट्री स्कूल” की तर्ज़ पर देश भर में सैन्य स्कूल खोलने जा रही हैं। यह वाकई में डॉ मुंजे को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

-साभार

 

अग्निवीर योजना भी सरकार की उसी सपने को फिर से खड़ा करने की है……..

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