नई पौध को राजस्थानी से जोडऩे की दरकारः जगतनारायण अग्रवाल
राजस्थान स्थापना दिवस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध समाजसेवी एवं व्यवसायी जगतनारायण अग्रवाल (सिमलावाले) ने कहा कि वर्ष में एक बार कम से कम अपनी जन्मभूमि अपने पूर्वजों के गांव जरूर जरूर जाना चाहिए । और अपनी नई पीढी को भी पूर्वजों के जन्म स्थल पर जाकर नमन करना चाहिए।
हैदराबाद में भी राजस्थान मूल के लोगों के कई संगठन बने हुए हैं। समाज स्तर पर भी कई संगठन है। ऐसे में इन संगठनों के माध्यम से कला व संस्कृति को आगे ले जाने की दिशा में किए जा रहे प्रयास सराहनीय है। हालांकि नई पीढ़ी मारवाड़ी या राजस्थानी भाषा को भूल रही है। ऐसे में नई पौध को इससे जोडऩे के प्रयास किए जाने की जरूरत है। बात यदि पहनावे की की जाएं तो राजस्थानी लोगों का एक अलग पहनावा रहा है। हालांकि यह अलग बात है कि पाश्चात्य सभ्यता के चलते हमारा परम्परागत पहनावा पीछे छूटता जा रहा है। अब केवल शादी-ब्याह, तीज-त्यौहार या अवसर विशेष तक सीमित रह गया। प्राकृतिक सौंदर्य में भी राजस्थान अद्वितीय है। यहां के पर्यटन स्थल, वन्यजीव अभयारण्य, अद्भुत स्थापत्य कला वाले किले और हवेलियां तथा थार का रेगिस्तान दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करता हैं। शौर्य और साहस ही नहीं बल्कि हमारी धरती के सपूतों ने हर क्षेत्र में कमाल दिखाकर देश-दुनिया में राजस्थान के नाम को ऊंचा किया हैं। यहां की कला संस्कृति तथा व्यापार इनकी अनूठी विशेषताएं हैं। राजस्थान की धरती पर रणबांकुरों ने जन्म लिया है। यहां वीरांगनाओं ने भी अपने त्याग और बलिदान से मातृभूमि को सींचा है। इसे पहले राजपूताना के नाम से जाना जाता था तथा कुल 19 रियासतों को मिलाकर यह राज्य बना तथा इसका नाम राजस्थान किया गया।