काश,मोदी का उपहार सनातनियों को भी मिल जाता
सौगात ए मोदी से चौंकाने वाली भाजपा का निशाना बिहार चुनाव पर
सोच रहा था 2 दिन बाद शुरू रहे हिंदू नव वर्ष पर अगर भारतीय जनता पार्टी विक्रम संवत -2082 पर मोदी का उपहार के नाम से एक किट सनातनी घरों में बांटती,तो पार्टी के उसे नारे का कितना व्यापक संदेश जाता, जिसमें वह सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास की बात करती है। मुसलमानों से परहेज (नफरत नहीं) करने वाली भाजपा ने पहली बार मुसलमानों के लिए ईद पर मोदी किट देने की घोषणा करके मुसलमानों को नहीं, हिंदुओं को भी अचंभित कर दिया। इस किट में सेवइयां,खजूर, ड्राई फ्रूट्स, बेसन,सूजी,घी, महिलाओं के लिए सूट,पुरुषों के लिए कुर्ता पायजामा जैसा सामान है। प्रति किट की कीमत करीब 6 से 7 सौ रुपए होगी। भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की ओर से देश के 32 लाख मुसलमानों को यह किट दिया जा रहा है। 25 मार्च से इसका वितरण शुरू हो गया है।
इस बीच,आज सुबह अखबारों और सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर आरएसएस,भाजपा नेताओं और विश्व हिंदू परिषद जैसे हिंदूवादी संगठनों की ओर से सनातनी परिवारों से घरों में धर्म ध्वजा लहराने, बंदरवार बांधने दिन के भजन में खीर पूरी बनाकर भोग लगाने तथा शाम को पांच-पांच दीपक प्रज्वलित करने की अपील की जा रही है। मन में ख्याल आया क्या ही अच्छा होता कि भाजपा मोदी का उपहार किट के नाम से सनातनी परिवारों को भी धर्म ध्वजाएं,कुकुंम,चावल,दूध, तेल और मिट्टी के दिए वितरित कर देती, तो वाकई लगता कि उसका सबका साथ सबका विकास नारा खोखला नहीं है। वैसे भी इस नारे पर मुसलमानों से ज्यादा भरोसा तो हिन्दू करते हैं। भाजपा और मुसलमानों तो यूं भी कभी एक-दूसरे के प्रति ईमानदारी नहीं रहे। हमेशा संदेह ही किया है। तो पहली बार सौगात ए मोदी देकर क्या बीजेपी मुसलमान का विश्वास जीत लेगी? इसका जवाब तो भविष्य में ही मिलेगा।
भाजपा अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का कहना है कि इस पहल का उद्देश्य गरीब मुस्लिम परिवारों को ईद की खुशियां मनाने में सहायता करना है। सवाल ये है कि क्या हिंदू और सनातनी परिवारों में गरीबी खत्म हो गई? क्या सभी सनातनी सम्पन्न हो गए? क्या कोई परिवार ऐसा नहीं बचा जिसे पर्व मनाने के लिए किसी भी सहायता जरूरत हो ? फिर केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ गरीब मुसलमानों को भी तो मिल ही रहा है,फिर उन पर यह अतिरिक्त मेहरबानी क्यों? लगता है भाजपा ने ये मान लिया है कि सनातनी तो उसका वोट बैंक बन ही चुका है,अब मुसलमानों में पैठ बनाई जाए। फिर उसमें और कांग्रेस में क्या अंतर रहा, क्योंकि भाजपा तो खुद कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाती रही है। ये तो वही बात हो गई की जो लोग आप पर भरोसा करें उन्हें भूलकर उन लोगों को मनाया जाए,जो आप पर कभी भी भरोसा न करते थे और शायद ना ही करेंगे।
मुसलमानों पर भाजपा की अचानक इस मेहरबानी से यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या वह इससे मुसलमानों का दिल जीत सकेगी? क्या इसका भाजपा को चुनावी जमीन पर कोई लाभ मिलेगा? इसका जवाब नकारात्मक ही होगा। लोकसभा चुनाव में वोट जिहाद, बंटेंगे तो काटेंगे, एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे जैसे नारे मुसलमानों के खिलाफ भाजपा ने दिए थे। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने मुसलमानों को घुसपैठिए बताते हुए कांग्रेस पर आरोप लगाए थे कि वह आपकी सम्पत्ति यहां तक की महिलाओं का मंगलसूत्र तक हड़प कर उनमें बांट देंगे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी अभी भी मुसलमान के खिलाफ बयानबाजी की आग उगलते रहते हैं।उत्तर प्रदेश में ईद पर सड़क पर नवाज पढ़ने पर रोक लगा चुके हैं। वहां नवरात्र में मीट की दुकान में बंद रखने की मांग उठ रही है। वक्फ बिल के खिलाफ मुस्लिम और उनके संगठन एकजुट विरोध में है। भाजपा के बड़े नेता इफ्ताय पार्टी में नहीं जाते। फिर सौगात ए मोदी क्यों? शायद भाजपा की रणनीति है कि जब मुस्लिम वोटो के नाम पर खोने को कुछ नहीं है, तो फिर कोशिश करने में क्या बुराई है। महाराष्ट्र और गुजरात में मुसलमानों के 20% से ज्यादा वोट पिछले चुनाव में भाजपा को मिले हैं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के दलों को भी मुसलमानों के वोटों का बड़ा हिस्सा मिलता है। शायद इसीलिए सौगात ए मोदी देते समय भाजपा के दिमाग में इस साल के बिहार चुनाव हो। क्योंकि बिहार में उसके सहयोगी नीतीश कुमार की जदयू,चिराग पासवान की लोजपा और जीतनराम मांझी की हम को मुसलमान वोट देते हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा की मुसलमान पर तीखे प्रहार की रणनीति से उनमें नाराजगी का नतीजा अगर उसके सहयोगी दलों को भुगतना पड़ा, तो बिहार की सत्ता से एनडीए की विदाई हो सकती है। इसलिए शायद उन्हें सहयोगी दलों के साथ रोके रखने का यह प्रयास हो। फिर केंद्र सरकार भी तो नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री तेलुगू रेशम के चंद्रबाबू नायडू की बैसाखियों पर टिकी है,जो मुसलमान के करीबी माने जाते हैं।