Thursday, May 22, 2025
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चित्तौड़गढ़ किले की तलहटी में बना है जौहर ज्योति मंदिर, हर साल चैत्र कृष्णा एकादशी पर लगता है ‘जौहर मेला’

 

चित्तौड़गढ़ किले की तलहटी में बना है जौहर ज्योति मंदिर, हर साल चैत्र कृष्णा एकादशी पर लगता है ‘जौहर मेला’

चितौड़गढ़।

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले को महाराणा प्रताप का गढ़ और ‘जौहर का गढ़’ भी कहा जाता है. वीर-वीरांगनाओं की याद में भारतीय इतिहास में चित्तौड़गढ़ ही ऐसा स्थान है, जहां पर उनकी याद में जौहर श्रद्धांजलि समारोह और मेले का आयोजन किया जाता है. देश में चित्तौड़गढ़ ही ऐसी जगह है, जहां नारी स्वाभिमान की रक्षा के लिए एक नहीं बल्कि तीन बार जौहर हुए. इन तीनों जौहर की स्मृति में करीब 8 साल पहले किले की तलहटी में एक मंदिर भी बनाया है. यह मंदिर जौहर भवन में मौजूद है, जिसे जौहर ज्योति मन्दिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर में इन शाकाओं की अगुवाई करने वाली महारानी पद्मिनी, राजमाता कर्णावती और फूलकंवर मेड़तणी की मूर्तियां स्थापित हैं.

1948 से आयोजित हो रहा जौहर मेला
पहले जौहर भवन में और इसके बाद जौहर ज्योति मन्दिर में पिछले कई सालों से अखंड ज्योत जल रही है. इन वीरांगनाओं की अगुवाई में ही चित्तौड़गढ़ में तीन जौहर हुए थे. चित्तौड़गढ़ में जौहर मेले की शुरुआत 1948 में हवन के रूप में हुई थी, जिसे बाद में जौहर श्रद्धांजलि समारोह के रूप में जाना गया और 1986 में इसका नाम बदलकर जौहर मेला कर दिया गया. यहां जौहर मेले पर तीन दिन तक अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित होते हैं. बताया जाता है कि ओरड़ी के ठाकुर कल्याण सिंह के नेतृत्व गुरुकुल के सहयोग से पहली बार 1948 की चैत्र कृष्णा एकादशी पर यज्ञ किया गया, जो आज तक चल रहा है. वर्ष 1950 में जौहर स्मृति संस्थान की स्थापना हुई.

पहला जौहर 1303 में, रानी पद्मिनी का
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय यह जौहर महारानी पद्मावती की अगुवाई में हुआ था. तब सुल्तान ने पद्मिनी के पति राणा रतन सिंह को छल से बंदी बना लिया था. इस कहानी पर बॉलीवुड में ‘पद्मावत’ नाम की मूवी भी बनी है.

दूसरा जौहर 1535 में, रानी कर्णावती का
चित्तौड़ में दूसरा जौहर गुजरात के बादशाह बहादुर शाह के आक्रमण के समय महाराणा सांगा की महारानी कर्णावती के नेतृत्व में हुआ.

तीसरा जौहर 1568 में, रानी फूल कंवर का
महारानी फूलकंवर की अगुवाई में 25 फरवरी 1568 को हुए जौहर में केवल राजपूत महिलाएं नहीं, बल्कि जनसाधारण की स्त्रियां और बच्चे भी शामिल थे. इसीलिए इसे जन जौहर कहते हैं. अकबर से यह पूरी लड़ाई भी यहां जन साधारण और सैनिकों ने ही लड़ी थी. इस जौहर के दिन चैत्र कृष्णा एकादशी थी. इसलिए हर साल इसी दिन यहां जौहर मेले की परंपरा शुरू

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