जो उपयोगी, वही मूल्यवान : राष्ट्रसंत पूज्य श्री कमल मुनि “कमलेश”
जीवन में आनन्द साधन से नहीं अपितु साधना से प्राप्त होता है। केवल मानव जन्म मिल जाना ही पर्याप्त नहीं है, हमें जीवन जीने की कला सीखनी भी आवश्यक है। पशु- पक्षी तो बिल्कुल भी संग्रह नहीं करते फिर भी उन्हें इस प्रकृति द्वारा जीवनोपयोगी सब कुछ समय पर और निशुल्क प्राप्त हो जाता है। मन को कितना भी मिल जाए, यह बार-बार अपूर्णता का अनुभव कराता रहेगा।
जो अपने भीतर तृप्त हो गया उसे बाहर के अभाव कभी परेशान नहीं करते। जीवन तो बड़ा आनंदमय है लेकिन हम अपनी इच्छाओं के कारण, अपनी वासनाओं के कारण इसे कष्टप्रद और क्लेशमय बनाते हैं। केवल संग्रह के लिए जीने की प्रवृत्ति ही जीवन को कष्टमय बनाती है। जिसे इच्छाओं को छोड़कर आवश्यकताओं में जीना आ गया, समझो उसे सुखमय जीवन का सूत्र भी समझ आ गया।
जीवन में अपने व्यवहार को इस प्रकार बनाओ कि आपकी अनुपस्थिति दूसरों को आपकी रिक्तता का एहसास कराने वाली हो। जीवन जीने की दो शैलियाँ हैं, एक जीवन को उपयोगी बनाकर जिया जाए और दूसरा इसे उपभोगी बनाकर जिया जाए। कर्म तो करना लेकिन निज स्वार्थ को त्यागकर परहित की भावना से करना ही जीवन को उपयोगी बनाकर जीना है।
जीवन को उपभोगी बनाने का अर्थ है, उन पशुओं की तरह जीवन जीना केवल और केवल उदर पूर्ति ही जिनका एक मात्र लक्ष्य है। मैं और मेरा में जिया गया जीवन ही उपभोगी जीवन है और जो जीवन उपभोगी है, वही समाज की दृष्टि में अनुपयोगी भी है। हमारा जीवन दूसरों के काम भी आए इस बात का भी अवश्य चिंतन होना चाहिए। जो उपयोगी है, वही मूल्यवान भी है।