सुपथगामी बनें- प्रज्ञामूर्ति पू.श्री अक्षय ज्योति जी म.सा.
जीवन में सुख की चाह तो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है पर वह प्रयास सदैव विपरीत दिशा में करता है। यदि आप सच में सुखी होना चाहते हैं तो फिर उन रास्तों का भी त्याग करें जिनसे जीवन में दुःख आता है। आपकी सुख की चाह तो ठीक है पर राह ठीक नहीं हैं। सुख के लिए केवल निरंतर प्रयास ही पर्याप्त नहीं है अपितु उचित दिशा में प्रयास हो, यह भी आवश्यक है। दुःख भगवान के द्वारा दिया गया कोई दंड नहीं है, यह तो असत्य का संग देने का फल है।
आज का आदमी बड़ी दुविधा में जीवन जी रहा है। वह कभी तो राम का संग कर लेता है पर अवसर मिलते ही रावण का संग करने से भी नहीं चूकता है। राम अर्थात् सद्गुण, सदाचार एवं रावण अर्थात् दुर्गुण, दुराचार। जैसा चुनाव करोगे वैसा ही परिणाम प्राप्त होगा। सत्य पीड़ा देगा मगर पराजय नहीं। असत्य के मार्ग का परित्याग करके राममय जीवन जियो बस यही सीख ही मानव जीवन में सुख-शांति व मंगल की मूल है। आत्म-विकास के लिए समय प्रबंधन करें और अपने समय का उपयोग करें। सुपथ का राह कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं। मनुष्य को इसके लिए अपने आत्म विकास को मजबूत बनाना पड़ता है। आत्म-विकास के लिए प्राथमिकता निर्धारित करें और अपने सबसे महत्वपूर्ण कार्यों को पहले पूरा करें। आत्म-विकास के लिए लक्ष्य निर्धारित करें और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए काम करें। आत्म-विकास के लिए सीखने की प्रक्रिया को अपनाएं और नई चीजों को सीखने का प्रयास करें।आत्म-विकास के लिए अनुभवों से सीखें और अपने अनुभवों को अपने जीवन में लागू करें। आत्म-विकास के लिए दूसरों से सीखें और उनके अनुभवों और ज्ञान से लाभ उठाएं।