जीवन में सदैव प्रयत्नशील बने रहें: राष्ट्रसंत पूज्य श्री कमलमुनि “कमलेश”
अकर्मण्यता का नाम संतोष नहीं अपितु निरंतर प्रयत्नशील बने रहकर परिणाम के प्रति अनासक्त बने रहना ही संतोष है। संतोष का अर्थ प्रयत्न न करना नहीं है अपितु प्रयत्न करने के बाद जो भी मिल जाए उसमें प्रसन्न रहना है। लोगों के द्वारा अक्सर प्रयत्न न करना ही संतोष समझ लिया जाता है।
कई लोग संतोष की आड़ में अपनी अकर्मण्यता को छिपा लेते हैं। प्रयत्न करने में, उद्यम करने में, पुरुषार्थ करने में असंतोषी रहो। प्रयास की अंतिम सीमाओं तक जाओ। एक क्षण के लिए भी लक्ष्य को मत भूलो। तुम क्या हो ? यह मुख से मत बोलो लोगों तक तुम्हारी सफलता बोलनी चाहिए।
कर्म करते समय सब कुछ मुझ पर ही निर्भर है इस भाव से कर्म करो। कर्म करने के बाद सब कुछ प्रभु पर ही निर्भर है इस भाव से शरणागत हो जाओ। परिणाम में जो प्राप्त हो, उसे प्रेम से स्वीकार कर लो यही जीवन की शांति एवं आनंद का मार्ग है।
प्रयत्नशील बनने के लिए हमें अपने लक्ष्यों को निर्धारित करना होगा और उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना होगा। इसके लिए हमें अपने समय का प्रबंधन करना होगा और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समय का उपयोग करना होगा।
प्रयत्नशील बनने के लिए हमें अपने आत्म-विश्वास को बढ़ाना होगा और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना होगा। इसके लिए हमें अपने आत्म-विश्वास को बनाए रखना होगा और जीवन में सफलता प्राप्त करनी होगी।
प्रयत्नशील बनने के लिए हमें अपने जीवन में सकारात्मक सोच रखनी होगी और आशावादी बनना होगा। इसके लिए हमें अपने जीवन में निराशा से बचना होगा और जीवन के प्रति आशावादी बनना होगा।
प्रयत्नशील बनने के लिए हमें अपने जीवन में आत्म-मूल्यांकन करना होगा और अपने लक्ष्यों को निर्धारित करना होगा। इसके लिए हमें अपने जीवन में आत्म-मूल्यांकन के आधार पर योजना बनानी होगी और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना होगा।