आखिर किसकी शह पर अधिकारी और पुलिस करती है दादागिरी, क्या शहर में दोनों हो गए हैं बेलगाम
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डॉक्टर कुलदीप शर्मा कोई मामूली आदमी नहीं है। वो शहर के एक इज्जतदार चिकित्सक हैं। ख्यातिप्राप्त यूरोलॉजिस्ट है। खुद का अस्पताल चलाते हैं। राज्य में सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता हैं और विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से पार्टी के टिकट के लिए मजबूत दावेदारी की थी। पार्टी के चिकित्सा प्रकोष्ठ के पदाधिकारी भी है। ब्राह्मण समाज में भी सक्रिय हैं। अगर अजमेर विकास प्राधिकरण का दल और पुलिस उनके साथ धक्का-मुक्की,बदतमीजी और मारपीट कर सकती है और घसीट कर जीप में डालकर थाने ला सकती है,तो समझा जा सकता है कि आम आदमी की तो पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के सामने क्या औकात होगी।
एडीए ने आज जो कुछ डॉक्टर शर्मा के साथ किया, वह चोरी और सीनाजोरी की कहावत का यथार्थ है। गलती भी एडीए की और दादागिरी भी एडीए की। पंचशील में जिस जमीन को डॉक्टर शर्मा ने नीलामी में खरीद कर मकान बनाया था, उस पर एडीए ने बिना नोटिस दिए और उनकी गैरमौजूदगी में जेसीबी चला दी। खबर मिलने पर जब शर्मा घर पहुंचे और रोकने की कोशिश की तो दल के साथ आए पुलिस वाले उन पर इस तरह टूट पड़े मानो में कोई असामाजिक तत्व काम में बाधा उत्पन्न कर रहा हो। आठ दस पुलिस वाले उन्हें धकियाते और गाली देते हुए जीप में डालकर थाने ले गए। उनकी चिकित्सक पत्नी के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया। शर्मनाक बात ये है कि जब उनके घर पर तोड़फोड़ की जा रही थी तब चिकित्सा दंपत्ति अपने-अपने काम पर थे और घर पर उनके दो नाबालिग बच्चे ही मौजूद थे. हालांकि शर्मा का कहना है कि उन्हें तोडफ़ोड़ का कोई नोटिस नहीं मिला,जबकि एडीए अधिकारी कह रहे हैं उन्हें नोटिस दिया गया था।
शर्मा ने जिस जमीन पर मकान बनाया, वह उन्होंने एडीए से आक्शन में ली थी। जबकि उसके पास एडीए का दूसरा भूखंड किसी और व्यक्ति को आंवटित था। आक्शन के बाद एडीए के जेईएन की गलती से शर्मा को ज्यादा भूमि की पैमाइश हो गई। ये भूमि पडोस के आंवटित भूखंड की थी। भले ही एडीए की गलती से ही उन्हें निर्धारित माप से ज्यादा भूमि का आक्शन हो गया,लेकिन पैसे उनसे उतने लिए गए,जितनी जमीन दी गई थी यानी गलत आवंटित जमीन के भी शर्मा ने पैसे दिए थे। एडीए को जब बाद में अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उसने अधिक जमीन पर बने मकान को तोड़ने के लिए डाक्टर शर्मा को कहा। लेकिन शर्मा इंकार कर दिया। उनका कहना था कि उन्होंने पूरी जमीन के पैसे दिए हैं और एडीए की गलती को वह क्यों भुगते। शर्मा तो पड़ोस का भूखंड पूरा खरीदने को तैयार थे। लेकिन मामला बैठा नहीं और विवाद की स्थिति बनी रही। अधिकारियों का यह भी कहना है कि उन्होंने शर्मा को ज्यादा ऑप्शन मिली जमीन के पैसे लौटा दिए हैं, लेकिन शर्मा इससे इनकार कर रहे हैं। लेकिन आज अचानक ज्यादा जमीन पर बने मकान को तोड़ने के लिए एडीए का दस्ता पहुंच गया। बताया जा रहा है कि तोड़फोड़ के लिए उसी जेईएन को भेजा गया,जिसकी गलती से ज्यादा पैमाइश हो गई थी और इसके लिए उसे चार्जशीट दी गई थी। जबकि इसकी जानकारी होने के बाद भी उपायुक्त ने तोड़फोड़ के आदेश दिए।
सवाल ये है कि क्या इस तरह किसी प्रतिष्ठत चिकित्सक के साथ बदतमीजी और धक्कामुक्की करने का अधिकार अधिकारियों और पुलिस को किसने दिया। एडीए अपने योजना क्षेत्रों में सालों से हुए अवैध कब्जे हटा नहीं पाता है और कई जगह तो उसके दल बैरंग लौटते हैं। लेकिन खुद की गलती से आवंटित जमीन पर बने मकान को तोड़ने की इतनी जल्दबाजी क्यों थी। अगर डॉक्टर दंपत्ति इस दौरान घर पर नहीं थे, तो क्या उन्हें बुलाया नहीं जा सकता था। शहर में प्रशासन और पुलिस कितनी शह पर दादागिरी कर रहे हैं। अगर एक डॉक्टर के साथ इस तरह बदतमीजी की जा सकती है, तो आम आदमी की तो औकात ही क्या है। डॉ. शर्मा दंपत्ति आरोप लगा रहे हैं कि जिस व्यक्ति का पड़ोस में भूखंड है उससे मिलकर या उससे पैसे लेकर एडीए अधिकारी तोडफ़ोड़ करने आए। इसकी हकीकत तो जांच के बाद सामने आएगी, लेकिन एडीए और इसके अधिकारियों और अभियंताओं का इतिहास यह बताता है कि ईमानदारी के लिए यहां कोई जगह नहीं रही। भ्रष्टाचार एडीए की इमारत का स्थाई निवासी है। नक्शे पास कराने, पट्टे लेने,नियमन कराने,फाइल को आगे बढाने हर काम के लिए लेनदेन यहां परंपरा की तरह चल रहा है। एडीए में जमीन कारोबारी अपने काम आसानी से करा लेते हैं। लेकिन आम आदमी धक्के पर धक्के खाता रहता है। डॉ. शर्मा के साथ जो व्यवहार किया गया,उसकी इजाजत तो किसी अवैध कब्जाधारी के साथ करने की भी नहीं की होनी चाहिए। उसे भी अगर पकड़ना है,तो पुलिस को संयम और शिष्टाचार दिखाना चाहिए। लेकिन लगता है खाकी वर्दी का संयम, शिष्टाचार और तहजीब से कोई संबंध नहीं रहा है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार तो राज्य में भ्रष्टाचार मुक्त शासन,कानून व्यवस्था और सबके सम्मान के नारे के साथ आई थी। लेकिन क्या, इनमें से बीते सवा साल में कुछ भी पूरा होता हुए नजर नहीं आ रहा है। इसका जवाब शायद नहीं होगा। इसीलिए तो खुद भाजपा कार्यकर्ता भी मानते हैं कि लगता ही नहीं है राज बदल गया है। जाहिर है जब सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं को ऐसा नहीं लगता है,तो आम लोगों को तो क्या लगेगा। उन्हें तो हर हाल में दो पाटों भाजपा और कांग्रेस के बीच ही पिसना है।जाहिर है शर्मा के साथ हुई घटना के खिलाफ निजी चिकित्सक एकजुट हो गए हैं और उन्होंने दोषियों पर जल्द सख्त कार्रवाई नहीं होने पर चिकित्सा बंद की चेतावनी भी दे दी है। अगर एशऐसा हुआ,तो फिर भुगतेगा आम आदमी ही।
-ओम माथुर की कलम से (फेसबुक)