राष्ट्रसंत कमलमुनि “कमलेश” जी एक प्रसिद्ध जैन संत और आध्यात्मिक गुरु हैं। वह जैन धर्म के श्वेतांबर संप्रदाय से संबंधित हैं।राष्ट्रसंत कमलमुनि “कमलेश” ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत एक छोटी उम्र में की थी और उन्होंने जैन धर्म के गहरे अध्ययन और अभ्यास के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान और शक्ति प्राप्त की।वे एक प्रसिद्ध व्याख्याता और लेखक हैं और उन्होंने जैन धर्म और आध्यात्मिकता पर कई पुस्तकें लिखी हैं। वह एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में भी जाने जाते हैं और उन्होंने कई लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान किया है।
राष्ट्रसंत कमलमुनि “कमलेश” को उनके आध्यात्मिक ज्ञान, उनकी व्याख्याता क्षमता, और उनकी सेवा भावना के लिए सम्मानित किया जाता है। वह एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं और उन्होंने जैन धर्म और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
महाराज के जीवन और कार्यों के बारे में कुछ और जानकारी इस प्रकार है:
– आध्यात्मिक यात्रा: कमलेश मुनि महाराज ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत बहुत कम उम्र में की थी। उन्होंने जैन धर्म के मूल्यों औ सिद्धांतों का अध्ययन किया और बाद में जैन मुनि बन गए।
– जैन धर्म के प्रसार और प्रचार: कमलेश मुनि महाराज ने जैन धर्म के प्रसार और प्रचार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने जैन धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों को प्रसारित करने के लिए कई पुस्तकें और लेख लिखे हैं।
– आध्यात्मिक प्रवचन: कमलेश मुनि महाराज एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक प्रवचनकर्ता हैं। उन्होंने जैन धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों पर कई प्रवचन दिए हैं।
– सामाजिक सेवा: कमलेश मुनि महाराज ने सामाजिक सेवा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने गरीबों और असहाय लोगों की मदद के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं।
कमलेश मुनि महाराज के कुछ प्रमुख पुरस्कार और सम्मान इस प्रकार हैं:
– जैन धर्म के लिए उत्कृष्ट योगदान: कमलमुनि “कमलेश” जी को जैन धर्म के लिए उत्कृष्ट योगदान के लिए पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
– आध्यात्मिक गुरु: पूज्य श्री कमलमुनि “कमलेश: जी महाराज को आध्यात्मिक गुरु के रूप में सम्मानित किया गया है।
– सामाजिक सेवा: कमल मुनि “कमलेश” महाराज को सामाजिक सेवा के लिए पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
परिचय
श्रमण संघीय आचार्य सम्राट डॉक्टर शिव मुनि जी महाराज के अज्ञानुवर्ती प्रवर्तक गुरुदेव रमेश मुनि जी महाराज के सुशिष्य श्रमण संघीय मंत्री गौ प्रेमी राष्ट्रसंत कमलमुनि जी महाराज ‘कमलेश’ वैशाख शुक्ला अष्टमी विक्रम संवत 2081 को अपनी दीक्षा के 44 वर्ष पूर्ण कर 45वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं । जब विक्रम संवत 2037 वैशाख शुक्ला अष्टमी के दिन आपकी दीक्षा हुई थी, उस समय ईस्वी सन् की तारीख 22 अप्रैल 1980 थी, अतः बहुत से भक्त ईस्वी सन की तारीख के अनुसार हर वर्ष 22 अप्रैल को भी आपका दीक्षा दिवस मनाते हैं । राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिला अंतर्गत डूंगला में 13 फरवरी 1957 में गुलाबचंद मनोहरबाई के घर आंगन में जन्मे कोमलचंद नागौरी से कमल मुनि बन गए राष्ट्रसंत एक ऐसे संत रत्न हैं, जिन्होंने जीव दया के क्षेत्र में अपना पूर्ण समर्पण प्रदान कर देशभर में जगह-जगह सैंकड़ों गौशालाएं खुलवाई। उनके मन में गौशालाएं खुलवाने का एक ऐसा जुनून सा बन गया की जेल में भी गौशालाएं खुला कर एक ओर जीव दया के प्रति केदियों का मन मोड़ा, साथ ही उन्हें अपराध मुक्त बनाने के लिए जबरदस्त प्रेरणा दी , उनकी पढ़ाई के बंदोबस्त किए एवं सामान्य नागरिक की भांति उत्कृष्ट जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। देश को अपराध मुक्त बनाने में अपने आप में यह एक बहुत बड़ा कदम साबित हुआ। कई जगह पाठशालाएं ,वृद्धाश्रम, संत जनों के वृद्धावस्था में स्थिरवास के लिए आवास, चिकित्सा, गरीबों के लिए अन्नदान आदि के ऐसे कार्य किए कि देशभर में आपके प्रति श्रद्धा बढ़ती गई । जगह-जगह श्रद्धालु आपके भक्त बन गए। सम्मान सत्कार के लिए भक्तजन पलक पावडे़ बिछाने लग गये। और तो और देश के 18 प्रान्तों की सरकारों ने आपको राजकीय अतिथि का दर्जा प्रदान कर दिया जो श्रमण संघ के लिए ही नहीं संपूर्ण जैन जगत के लिए गौरव व गरिमा का विषय है । यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि मेवाड़ सिंहणी सद्गुरुवर्या यश कंवर जी महाराज एवं कौशल्या कंवर जी महाराज ने राष्ट्र संत के जन्म स्थल डूंगला में संयुक्त चातुर्मास किया था । तब उनके प्रवचनों से कोमलचंद में वैराग्य के अंकुर प्रस्फुटित होने लगे । भावना इस तेजी से बदली की वह कठोर साधना करने लगे एवं माता श्री से दीक्षा की आज्ञा मांग ली। अचानक दीक्षा की बात सुनकर माँ काफी चिन्तित हो उठी। घबराए मन से माता श्री ने कहा -बेटा! तुम्हारे पिताश्री देवलोक हो चुके हैं । बड़े भाई सरकारी नौकरी में है, तुमने यह कदम उठाया तो फिर घर परिवार को कौन संभालेगा? कोमल ने अपने कोमल मन से ही माताश्री को खूब समझाया किंतु माँ नहीं मानी तब काफी जद्दोजहद के बाद कोमल ने स्पष्ट कहा कि जब तक मुझे दीक्षा की आज्ञा नहीं दोगे में आडा आसान नहीं करूंगा। इसके साथ ही आज्ञा न देने तक मीठे का त्याग सहित कठोर अभिग्रह ले लिया। दीपावली पर श्मशान भूमि में जाकर साधना की। वैराग्य की प्रबलता के आगे बेबस माताश्री ने आज्ञा दी तब आपने गुरु के चयन तक एक वर्ष के लिए ब्यावर स्थित जैन दिवाकर छात्रावास में संस्कृत , प्राकृत आदि विषय सहित जैनागमों का गहन अध्ययन किया। स्वाध्यायी बनकर प्रवचन भी दिए । इसी दौरान पश्चिम भारतीय प्रवर्तक गुरुदेव रमेशमुनि जी महाराज की सरलता, विनम्रता , विद्वता से प्रभावित होकर 22 अप्रैल 1980 को वैशाख शुक्ला अष्टमी पर डूंगला में मेवाड़ गौरव प्रतापमल जी महाराज के सानिध्य में दीक्षा ग्रहण कर ली । वर्षीतप का प्रसंग भी साथ में था , करीब 40 संत साध्वियों सहित हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति थी। दीक्षा के बाद आपको कमलमुनि का नाम दिया गया। अब कोमलचंद कमलमुनि बनकर जैनागमों के अध्ययन को आगे बढ़ाने में लग गए तथा करीब 4 वर्ष तक गहन अध्ययन के साथ-साथ जैन सिद्धांत आचार्य की परीक्षा पास की। अपनी सरलता, विनम्रता विनयशीलता , मिलनसारिता, दूरदर्शिता व विवेक से समाज सहित संत साध्वियों पर आपने गहरा प्रभाव जमाया तथा इन्हीं गुणों की बदौलत दीक्षा के मात्र 5 वर्ष बाद ही गुरुदेव ने आपको अलग से स्वतंत्र चातुर्मास करने की आज्ञा प्रदान कर दी। उस समय वीरवाल प्रवृत्ति को हाथ में लेकर रामपुरा में चातुर्मास किया, जो ऐतिहासिक सिद्ध हुआ । शासन- प्रशासन को प्रेरित करके ग्राम प्रधानों को गौशाला खोलने के लिए तैयार किया , सेंट्रल जेलों में जाकर लोगों को अपराध मुक्त करने के प्रबल प्रयास किए। जेल में गौशालाएं खुलवाई । आतंकवाद व नक्सलवाद को समाप्त करने हेतु उनके बीच जाकर अहिंसा की अलख जगाई। कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा देश के विभिन्न प्रांतो सहित नेपाल आदि देशों में पैदल विहार कर धर्म जागृति फैलाने वाले कमल मुनि जी महाराज ने सभी धर्म पंथ के धर्म गुरुओं से मिलकर गहन विचार विमर्श किए। इतना सब होते हुए भी आप सदैव पदमोह से दूर रहे । फिर भी अनेकानेक पदवियों से विभूषित होते ही रहे। देश में राष्ट्रीय मुस्लिम अहिंसा मंच का गठन कर नवीन क्रांति का सूत्रपात किया। आपकी ही प्रेरणा से बड़ी संख्या में मुस्लिम बंधु भी गौ रक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं । श्रमण संघ में मंत्री पद को सुशोभित करते हुए अपने इंद्रधनुषी व्यक्तित्व से श्रमण संघ की शोभा में अभिवृद्धि कर रहे हैं। अपने जन्म स्थल डूंगला में जैन दिवाकर कमल तीर्थ की स्थापना की है, जिसमें पशु-पक्षी की सेवा कार्य के अलावा वृद्ध व अस्वस्थ संत- साध्वियों की आवास की व्यवस्था कर श्रमण संघ में भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया। आपने विधवा महिलाओं को हीन भावों से मुक्त करने का संकल्प लेकर प्रभावी प्रेरणाएँ दी एवं उन्हें ‘वीरांगना ‘ का दर्जा दिलाते हुए उनमें नवीन उत्साह ,उमंग व साहस भरने का सफल प्रयास किया है। उसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। उनके द्वारा किए जाने वाले मानवतावादी कार्यों से काफी प्रभावित रही। आप जहां भी रुके, वहां गौशाला, पक्षी विहार, भवन निर्माण सहित प्राणी जगत की रक्षा, सुरक्षा व मानवतावादी कार्यों की प्रेरणा करते रहे एवं सभी स्थानों पर आपकी प्रेरणाओं ने साकार रूप लिया, यह आपके प्रभावी व्यक्तित्व की स्पष्ट निशानी रही। दरअसल ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने आपको विशेष गुण गौरव एवं शब्द संस्कारों से विभूषित करके जनकल्याणार्थ गढ़ा हो। निश्चित ही आप गुरु होने के साथ-साथ मानवता के मसीहा जैसे हैं, यह सारी ऊंचाइयां प्राप्त करने में आपको कई बार विरोधाभास भी झेलना पड़ा किंतु उन सबसे तनिक मात्र भी विचलित नहीं हुए । मैंने उनसे कई बार वार्ता चर्चा भी की तो वे बोले कोई भी विष घोले , मैं तो अमृत पिलाऊंगा। यह उनके जीवन का यथार्थ दर्शन भी रहा। सहअस्तित्व , सहिष्णुता व समता जैसे गुणों से लोगों का दिल जीता तथा आज इसी वजह से जहां भी जाओ, श्रद्धालुओं की कतारें लगी दिखाई देती है , तब सहज ही लगने लगता है की जन्म लेना एक सामान्य बात है किंतु गुण संपन्न जीवन जीना विशेष बात होती है, जो व्यक्ति संयम और परोपकार का जीवन जीता है, वह स्वयं धन्य बन जाता है। ऐसी आत्माएं असाधारण होती है, वही असाधारणता आपमें भरी पड़ी है। निश्चित ही आपका जीवन अलौकिक, दिव्य अनुपम व श्रेष्ठ है। व्याख्यान वाचस्पति, वीरवालोद्धारक, राष्ट्रसंत , पंजाबरत्न, अंतरराष्ट्रीय अहिंसा सेनानी, जगतगुरु, अहिंसा दिवाकर जैसी अनेक पदवियां आपको प्राप्त हुई है।
धर्म प्रभावना के साथ-साथ गौ रक्षा एवं गौ सेवा के क्षेत्र में क्रांति मचा देने वाले राष्ट्र संत ने फक्कड़ अंदाज में व्यसन मुक्ति, संस्कार निर्माण हेतु शिक्षा के लिए विद्यालयों की प्रेरणा, चिकित्सा, मानव सेवा के कार्यों को कुछ इस तरह अंजाम दिया है कि लाभान्वित होने वाले ही नहीं सुनने वाले भी धन्य धन्य कह उठते हैं । राष्ट्र संत के कार्यों की यह मात्र एक बानगी है , यदि सभी कार्य उल्लेखित किए जाएं तो हर कोई दाॅंतों तले उंगली दबाने को विवश हो जाएगा