“मनुष्यता के विकास का सर्वोपरि मापदंड अध्यात्म ज्ञान” है ज्ञान के बिना विकास की परिकल्पना भी नही की जा सकती उक्त उद्गार राष्ट्रसंत पू.श्री कमल मुनि “कमलेश ” ने व्यक्त किये। महाराज साहब ने बताया कि
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा हैं कि –
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्वता।
संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला दूसरा और कुछ भी नहीं हो सकता।
राजसत्ता को बहुत महत्त्व दिया जाता है, धन की सत्ता को बहुत महत्त्व दिया जाता है किन्तु भारत के मानस ने निर्द्वंद्व हो कर कहा और निश्चित रूप से। कोई संशय नहीं, संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला दूसरा और कुछ भी नहीं हो सकता।
यह मनुष्यता है, मनुष्यता के विकास का सर्वोपरि मापदंड ज्ञान ही है और निश्चित रूप से ज्ञान ही है ।
जीवन के लिए भोजन भी चाहिए, कपड़ा भी चाहिए, मकान भी चाहिए, राज्य और धन भी चाहिए क्योंकि जीवन के लिए ये सभी जरूरी हैं।
किन्तु भोजन, कपड़ा, मकान, राज्य और धन जीवन के लिए हैं।
ऐसा न हो कि ये ही जीवन के परम साध्य बन जायें। मानव जीवन का परमसाध्य तो ज्ञान ही हो सकता है क्योंकि संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला दूसरा और कुछ भी नहीं हो सकता !
जीवन के लिए सभी चीज चाहिए, यह ठीक है किन्तु मनुष्यता का सारसर्वस्व तो उसके ज्ञान में ही निहित है। आवश्यक तो जीवन के लिए सभी कुछ है। धन भी और राज्य भी। बात तो सर्वोपरि पवित्रता की है न।
यह ज्ञान ही मनुष्य को उठा सकता है। मनुष्यता का विस्तार कर सकता है।
मनुष्य को देवत्व तक पँहुचाने का सामर्थ्य ज्ञान में ही हो सकता है।