अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी… तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, “पुत्री भविष्य में कभी तुम पर घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना। सीधे भगवान की शरण में जाना।” उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली, “आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता ?”द्रौपदी बोली, “क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए।फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया। मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे।
पितामह भीष्म, द्रोण धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा, वह सभी आँखें झुकाए आँसू बहाते रहे।सबसे निराशा होकर मैंने श्रीकृष्ण को पुकारा, “आपके सिवाय मेरा और कोई भी नहीं है, तब श्रीकृष्ण तुरंत आए और मेरी रक्षा की।”
जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्री कृष्ण बहुत विचलित होते हैं। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था।रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है।
रूकमणि बोलती हैं, “आप जाएँ और उसकी मदद करें।” श्री कृष्ण बोले, “जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूँ। एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूँगा।
तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई थी।
उस समय “मेरी सभी पत्नियाँ वहीं थी। कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई। मगर उस समय मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बाँध दिया।
आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है, लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं जा नहीं सकता।” अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े गए।।
इन्द्र युधिष्ठिर को अपने रथ में बिठाकर स्वर्ग ले गए। जैसे ही उन्होंने स्वर्ग में कदम रखा, वे वहां दुर्योधन को देखकर आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने इन्द्र से पूछा कि उनके जैसा व्यक्ति स्वर्ग में कैसे हो
युधिष्ठिर द्रौपदी और अपने भाइयों को कहीं नहीं देख पाए और उन्होंने इन्द्र से उनके बारे में पूछा। इन्द्र ने एक रक्षक को बुलाया और उसे युधिष्ठिर को उनके भाइयों और द्रौपदी के पास ले जाने के लिए कहा। रक्षक युधिष्ठिर को मरे हुए जानवरों के शवों से भरे एक दुर्गंध भरे रास्ते से ले गया। युधिष्ठिर को रक्षक का पीछा करना बहुत मुश्किल लग रहा था, लेकिन उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा।अचानक, उन्होंने कुछ रोने और जानी-पहचानी आवाज़ें सुनीं। उन्होंने एक आवाज़ सुनी, “मैं भीम हूँ” और एक और ने कहा, “मैं अभिमन्यु हूँ।” युधिष्ठिर को एहसास हुआ कि उनके भाई और पत्नी नरक में थे। अपने प्रियजन को पीड़ित देखकर क्रोधित होकर उन्होंने कहा, “जब तक मेरे प्रियजन यहाँ पीड़ित हैं, मुझे स्वर्ग में रहने का कोई अधिकार नहीं है।”अचानक, धर्मराज प्रकट हुए और दुर्गंध मीठी खुशबू में बदल गई। उन्होंने युधिष्ठिर को आशीर्वाद दिया और कहा कि उन्होंने युधिष्ठिर को यह दिखा कर परीक्षा में डाला है कि उनके भाई और द्रौपदी नरक में कष्ट भोग रहे हैं। चूँकि युधिष्ठिर ने उनके साथ नरक में रहने का फैसला किया था, इसलिए धर्मराज व्यक्तिगत रूप से युधिष्ठिर को आशीर्वाद देने आए थे।उन्होंने आगे कहा, “आपके प्रियजनों में से कोई भी नरक में नहीं है। यह सिर्फ़ आपकी परीक्षा लेने के लिए एक भ्रम है। आप हमेशा एक आदर्श राजा रहे हैं और आपके लिए यह देखना ज़रूरी है कि लोग नरक में कष्ट भोग रहे हैं।” युधिष्ठिर यह सुनकर बहुत खुश हुए कि उनके भाई और द्रौपदी स्वर्ग में हैं और वे भी वहाँ उनके साथ शामिल हो गए।
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सत्य और धर्म का पालन:द्रौपदी उत्तरा को सिखाती है कि सत्य और धर्म का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है, भले ही इसके लिए कितनी भी कठिनाई क्यों न हो.
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मर्यादा और सम्मान:द्रौपदी उत्तरा को सिखाती है कि हर परिस्थिति में अपनी मर्यादा और सम्मान को बनाए रखना चाहिए, और किसी भी अन्याय या अपमान के सामने झुकना नहीं चाहिए.
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आत्म-विश्वास:द्रौपदी उत्तरा को सिखाती है कि वह हमेशा अपने आप पर विश्वास रखे और अपनी क्षमता पर भरोसा करे.
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कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य रखें:द्रौपदी उत्तरा को सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य रखना चाहिए और हार नहीं माननी चाहिए.
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न्याय के लिए संघर्ष करें:द्रौपदी उत्तरा को सिखाती है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और न्याय के लिए संघर्ष करना चाहिए.