श्री घनश्यामदास बिड़ला (जन्म-1894, पिलानी, राजस्थान, भारत, मृत्यु.- 1983) भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी. के. के. एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे। इस समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, विस्कट फ़िलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम क्षेत्र में है, जबकि अग्रणी कंपनियाँ ‘ग्रासिम इंडस्ट्रीज’ और ‘सेंचुरी टेक्सटाइल’ हैं। ये स्वाधीनता सेनानी भी थे तथा बिड़ला परिवार के एक प्रभावशाली सदस्य थे। वे गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी थे। भारत सरकार ने सन 1957 में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। घनश्याम दास बिड़ला का निधन जून, 1983 ई. हुआ था।
आइये अब पढ़ते हैं बिड़ला ग्रुप के संस्थापक घनश्याम दास जी बिड़ला (G.D. Birla) द्वारा अपने पुत्र बसंत कुमार जी बिड़ला (B.K. Birla) के नाम 1934 में लिखित एक अत्यंत प्रेरक पत्र..
चि. बसंत,
यह जो लिख रहा हूँ उसे बड़े होकर और बूढ़े होकर भी पढ़ना, अपने अनुभव की बात कहता हूँ। संसार में मनुष्य जन्म दुर्लभ है और मनुष्य जन्म पाकर जिसने शरीर का दुरुपयोग किया, वह पशु है। तुम्हारे पास धन है, तन्दुरुस्ती है, अच्छे साधन हैं, अगर उनको सेवा के लिए उपयोग किया, तब तो साधन सफल है अन्यथा वे शैतान के औजार हैं। तुम इन बातों को ध्यान में रखना।
धन का मौज-शौक में कभी उपयोग न करना, ऐसा नहीं कि यह धन सदा रहेगा ही, इसलिए जितने दिन पास में है उसका उपयोग सेवा के लिए करो, अपने ऊपर कम से कम खर्च करो, बाकी जनकल्याण और दुखियों का दुख दूर करने में व्यय करो। धन शक्ति है, इस शक्ति के नशे में किसी के साथ अन्याय हो जाना संभव है, इसका ध्यान रखो कि अपने धन के उपयोग से किसी पर अन्याय ना हो।
अपनी संतान के लिए भी यही उपदेश छोड़कर जाओ। यदि बच्चे मौज-शौक, ऐश-आराम वाले होंगे तो पाप करेंगे और हमारे व्यापार को चौपट करेंगे। ऐसे नालायकों को धन कभी न देना, उनके हाथ में जाये उससे पहले ही जनकल्याण के किसी काम में लगा देना या गरीबों में बाँट देना। तुम उसे अपने मन के अंधेपन से संतान के मोह में स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं कर सकते। हम भाइयों ने अपार मेहनत से व्यापार को बढ़ाया है तो यह समझकर ही कि वे लोग धन का सदुपयोग करेंगे।
भगवान को कभी न भूलना, वह अच्छी बुद्धि देता है, इन्द्रियों पर काबू रखना, वरना यह तुम्हें डुबो देगी। नित्य नियम से व्यायाम-योग करना। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी सम्पदा है। स्वास्थ्य से कार्य में कुशलता आती है, कुशलता से कार्यसिद्धि और कार्यसिद्धि से समृद्धि आती है सुख-समृद्धि के लिए स्वास्थ्य ही पहली शर्त है मैंने देखा है की स्वास्थ्य सम्पदा से रहित होने पर करोड़ों-अरबों के स्वामी भी कैसे दीन-हीन बनकर रह जाते हैं। स्वास्थ्य के अभाव में सुख-साधनों का कोई मूल्य नहीं। इस सम्पदा की रक्षा हर उपाय से करना। भोजन को दवा समझकर खाना। स्वाद के वश होकर खाते मत रहना। जीने के लिए खाना हैं, न कि खाने के लिए जीना हैं।
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घनश्यामदास बिड़ला