आदिशक्ति मां देवी के अनेकोनेक मंदिर भारतवर्ष में एक से बढकर एक है। कई जगह माता अपने नाम से नहीं जिस गांव में विराजमान है उसी नाम से पूजा जाता है दहमी वाली मां, जिलानी वाली मां, तातीजा वाली मां और भी बहुत से नाम है जो गांव के नाम से ही प्रसिद्ध है।
राजस्थान के झुंझुनू जिला अंतर्गत गांव महराणा में भी मां नगरकोट वाली का दिव्य व भव्य दरबार है जहां पर आसपास के ही नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष के श्रद्धालुगण इस दरबार में धोक लगाकर अपनी हाजरी लगाते हैं।
अरावली पर्वतमाला के अंतिम छोर पर स्थापित इस मंदिर का इतिहास भी अलौकिक व अद्भुत है।
कहाँ जाता है आज से एक हजार वर्ष पुराने इस मंदिर मां स्वयं भू रुप से प्रकट हुई उसके उपरांत माता ने इसी क्षेत्र में रह कर अपनी लीलाएं की।
जनश्रुति है कि गांव के गौ वाले अपने गौवंश को चराने के लिए यहाँ जाते थे पहले यह क्षेत्र बहुत बियाबान था, एक गाय जो दुधारू थी वह नित्य प्रतिदिन उसी स्थान पर चरने जाती तो उसके थनों से अपने आप दूध निकलता और एक चट्टान पर गिरता लेकिन वह दूध दिखाई नहीं देता कि कहां जा रहा है। गौपालक जब घर जाता तो गांय दूध नहीं देती इस प्रकार पांच छ दिन बीत गये एक दिन वह गौ चरवाहे ने उस गाय के पीछे ही रहा निर्धारित समय पर वही घटना फिर घटित हुई। जब एक बड़ी शीला के बीच में दरार हुई और पूरा दूध उसी में चला गया। पहले तो चरवाहा डर गया परंतु फिर हिम्मत करके अपने गांव के लोगों पूरी घटना के बारे में बताया। पहले तो ग्रामीणों उसकी बात पर विश्वास नहीं किया परंतु अगले दिन कुछ महिला व पुरुष वहाँ पहुंचे तो देखा कि गाय वही खडी है और उसके थनों से दूध निकल रहा है, पत्थर की शीला में दरार आई और दूध की धार वही समाने लगी। तभी ग्रामीणों ने प्रार्थना की कि आप कौन है और कहाँ से आई, आप देवता है या दानव। तब उस अदृश्य शक्ति ने अपना परिचय देते हुए कहा कि में नगरकोट वाली माता बगलामुखी हूं और अब मैं स्थान पर रहूंगी। मान्यता है कि गुरु गौरक्षनाथ की प्रेरणा से माता ने यहाँ स्वीकार किया। मां की अद्भुत लिया देख भक्तों ने वहां पूजा अर्चना शुरु कर दी।
कालांतर में सिघांना कस्बे के साधन संपन्न सेठ को इस बात का पता लगा तो वो नंगे पर मां के दरबार पहुंचा और विनती की कि उसके बेटे को ठीक कर दें तो वह यथाशक्ति माता का मंदिर बनायेंगा। उसका बेटा जन्मजात अंधा थी। एक दिन वह सेठ अपने बेटे को साथ लेकर मां के दरबार में पहुंचकर विधिविधान से पूजा की और अपनी मन्नत मां महराणा वाली के श्रीचरणों में भेंट की। जब वह वापस उतरने लगा तो उसके बेटे को पहली ही सीढ़ी पर ठोकर लगी और उसके सिर से खून बहने लगा सेठ घबरा गया लेकिन मां कि यह लीला थी उसका जन्मजात से अंधा बेटा देखने लगा। सेठ ने उसी समय जो उस जमाने में होता था एक मां का मंड व दो छोटे कमरे बनवाये। इस तरह से महराणा वाली माता की ख्याति फैल गई। आज उसी स्थान पर भव्य मंदिर बना है।
कहते हैं कि मां जहाँ पर विराजमान है उसके पिछे एक सुरंग है जो हिमाचल के नगरकोट तक जाती है।
नवरात्रि के दौरान यहाँ एक विशाल मेले का आयोजन भी होता है जहाँ माता के भक्त जात-जडुला करने आते हैं।